बहुत भोला ही रहा है तु क्या मालुम नहीं तुझे।
पीठ पे होता है वार यहाँ क्या मालुम नहीं तुझे।।
कैसे तेरी लंबी उम्र की दुआ की है अभी अभी,
वो तेरे कत्ल में शामिल है क्या मालुम नहीं तुझे।
कोई लेना देना नहीं है किसी से आदमी को यहाँ,
सब रिश्ते स्वार्थ के लिये है क्या मालुम नहीं तुझे।
बैकार के हाथ पैर मारना भी तु बंद कर दे अब,
यह दलदल सी जमीं है क्या मालुम नहीं तुझे।
तुने उनसे आँख मिलाने की भी हिम्मत कैसे की,
वो बड़े औहदे वाले लोग है क्या मालुम नहीं तुझे।
बस तु अपना 'स्वर' खुद ही गुनगुनाया कर 'करन',
सुनता नहीं कोई दिल से इसे क्या मालुम नहीं तुझे।
©® जाँगीड़ करन kk
10/02/2015_7:10 morning
फोटो- साभार गुगल
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