यादों के उस समंदर से भरके नाव लाया हुँ,
जवानी के शहर में बचपन का गाँव लाया हुँ।
झाड़ियों में छिपे खरगोश की आहट,
कच्चे आमों की वो खट्टी बोराहट।
खेत मालिक के आने की ले सूचना,
मैं सरपट दौड़ के उल्टे पाँव आया हुँ...
जवानी के शहर.........................
दीपावली के दिये से बनाये तराजु,
बोलो सेठ क्या भाव लगाये काजु।
तकड़ी के धागों में हौले से बसता,
भ्रातृत्व स्नेह वो का भाव लाया हुँ।
जवानी के शहर....................
तितलियों के पीछे भागती हुई बहना,
फूलों की क्यारियों का भी क्या कहना।
बहना की आँखों में बसा सुंदर संसार,
देखो तो जरा कहाँ से संभाल लाया हुँ।
जवानी के शहर.......................
गलियों में यह क्या हो रही है हलचल,
कोई कान में फुसफुसाया चुपके से चल।
शहर के इन सन्नाटों को तोड़ने के लिये,
बचपन के खेल से मेरा वो डाम लाया हुँ।
जवानी के शहर..........................
सुबह से शाम तक दर्द ही तो सहता हुँ,
तुम नहीं समझोगे मैं गुमसुम रहता हुँ।
क्यों लौटकर नहीं आ जाता बचपन,
जिंदगी तेरे लिये एक सवाल लाया हुँ।।
जवानी के शहर.........................
©®जाँगीड़ करन KK
02/11/2016__5:00AM
वाह अद्भुद
ReplyDeleteवाह अद्भुद
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया भाई
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