जुल्फों के इन फंदों में फँसकर,
जिंदगी नहीं चलती संभलकर।
आईना भी तुमसे कहता होगा,
जान लेगी मुँह उस तरफ कर।
साँझ ढले पनघट पर न जाना,
राही गिरते पड़ते संभलकर।
आसमान तो है काला काला,
पुर्णिमा कर दें चल छत पर।
एक करन अब कितना बोलें,
चल सोजा ख्वाब संजोकर।।
©® जाँगीड़ करन kk
No comments:
Post a Comment