बेतरतीब जिंदगी का फ़साना है,
कुछ तुम्हें कुछ मुझे आजमाना है।
लाख दिलों को घायल कर दें,
गौरी का कैसा शरमाना है।
वक्त के बेरहम हाथों से सब को,
इक बार तो गुजर के जाना है।
कितनी पीर को सहता है दिल,
इस बात से जग अनजाना है।
मात पिता इक सच्चे साथी,
मेरा तो बस यहीं बताना है।।
चल करन अब छोड़ दें आशा,
हो गया अब तो सयाना है।
©®जाँगीड़ करन kk
26-11-2016__11:30AM
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ReplyDeleteशुक्रिया सर जी
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