रुक्सत जो कर गई,
हवाएं
इधर शहर में
घुटन सी होती है।
चुपचाप खड़ी ये
अट्टालिकाएं,
सूरज की
रोशनी को
तरसती है।
शौरगुल से
परेशान पिल्ला
दुबका है,
मोहल्ले की
सबसे
गंदी नाली में।
दीवारों को ताकता
कोई,
डायरी में लिखे
दो लफ्जों से
तस्वीर
बनाने की जुगत में है,
मगर
हर बार
तस्वीर धूंधली ही
नज़र आती उसको,
कई दफा फिर
कोशिश करता है,
और
अंत में
समझ आता है उसको,
कल्पनाओं की
तस्वीरें
सुंदर तो होती है,
मगर साफ
नहीं हो सकती।
जिंदगी की जो
भूल करी
वो भूल
माफ नहीं हो सकती....
किंचित
वो समझ गया सारा ही रहस्य,
तस्वीर को
साफ करने,
वो निकल पड़ा है,
लफ़्ज़ों के
समंदर को
छिपी तस्वीर लाने,
वो निकल पड़ा है
जिंदगी की भूल
का
परिणाम बनाने,
शायद ये
लफ्ज़
अब
उसकी दुनिया है......
...........
A letter to swar by music 51 to 75..
Coming soon...
#करन