मैं
अंधेरे की नियति
मुझे चांद से नफरत है......
मैं आसमां नहीं देखता अब
रोज रोज,
यहां तक कि मैं तो
चांदनी रात देख
बंद कमरे में दुबक जाता हूं,
बस अमावस को
आसमां में
काला स्याह अंधेरा देखता हूं.....
तारों से तो कभी
अपना कोई वास्ता भी नहीं रहा,
बस कभी कभी
इनके बीच की दूरी
खटकती है,
क्या इनको भी
फकत अंधेरा ही रास आता है?
खैर छोड़ो तारों को
तुम बताओ
कभी तुम्हारे उजाले में
मेरी परछाई तक देखी है?
तुम्हें अफसोस होगा
तुम्हारे चांद होने का,
तुम्हें खुद के उजाले से
नफ़रत करने को
मजबूर न कर दूं तो कहना........
दरअसल मुझे तुमसे
नफरत नहीं....
तुम्हारी नज़रों से खुद को
देखने पर
खुद से है,
इसलिए तो मुझे
अंधेरे में रहने दो..........
मुझे खुद से
प्रेम करने दो.....
@karan DC 2.5.2021
जोरदार
ReplyDeleteजबर्दस्त