Saturday, 26 March 2016

On the highway of life

जिंदगी के राजपथ पर
मैं चलता रहा हुँ।
कभी धूप में जलता रहा हुँ,
तो कभी बारिश में
भीगता रहा हुँ।

मेरे पाँवों में छालों का आवागमन रहा है,
कभी एक अश्रु से
इन्हें धोता रहा हुँ,
तो कभी तुम्हारी यादों
के स्टेशन पर छाँव देता रहा हुँ।।

अक्सर जमाना
बड़ी बड़ी लक्जरियों सा
आगे निकल जाता है,
मैं बस तुम्हारे साथ की आस में बिना किसी को हाथ दिये
चलता रहा हुँ।।

पास के ट्रैक से तुम
शताब्दी से निकल गई हो
मंजिल के लिये,
बिना मेरी ओर
ध्यान दिये,
और मैं बस तुम्हें ही
ताकता रहा हुँ।।

तुम वक्त से पहले
मंजिल पर पहुँच चुके हो,
मैं एक तन्हा राही हुँ,
पर निरंतर चलता तो रहा हुँ।
©® जाँगीड़ करन KK
26.03.2016.17:55 pm

Thursday, 17 March 2016

तन्हाई की रात

तन्हाई की रात ये कैसी भारी सी है,
अरमानों पर चलती मेरे आरी सी है।

सूरज से दूर भागता है जुगनु हरदम,
दोनों में किस तरह की यारी सी है।

मैं ठहरा हुँ परिंदा एक जख्मी सा,
मोहब्बत तेरी ऊँची अट्टारी सी है।

क्यों किसी के इंतजार में बैठा रहता हुँ,
काटे मुझको वक्त की तलवार दुधारी सी है।

कृष्णा तुम भी गिन गिन के ले रहे हो बदलें,
शायद मुझ पर पिछले जन्म की ऊधारी सी है।

एक तो 'स्वर' की परीक्षा है सर पे 'करन',
और मौसम में छाई ये कैसी खुमारी सी है।
©® जाँगीड़ करन
17/03/2016_19:30 evening

Friday, 11 March 2016

चाँद को निहारा जायें

आँसुओं को लेकर अब कहाँ को जाया जायें,
चलो पल दो पल चाँद को ही निहारा जायें।।

हर तरफ है यहाँ अब गम की परछाईयाँ,
कहाँ से खुशी का ठिकाना निकाला जायें।

वो कश्ती कागज की वो खट्टे बैर है कहाँ,
कैसे अब गिलहरी के पीछे पीछे भागा जायें।

कहाँ आ के ऊलझा हुँ समझदारी के फेर में,
चलो पतंग की डोर को फिर ऊलझाया जायें।

कहानी जिंदगी की बस सबब सवालों की है,
चलो फिर से नानी की कहानी को सुना जायें।

थका हुआ राही है 'करन' तो तलाश में तेरी,
तेरी ही गोद में सोकर 'स्वर' गुनगुनाया जायें।

©® जाँगीड़ करन
11/03/2016_ 06:35 morning

फोटो- साभार इंटरनेट

Thursday, 10 March 2016

मेरा घरौंदा

कुछ समझे,
नहीं ना,
खैर छोड़ो
चलो फिर मैं कोई
ख्वाब सजाता हुँ
युँ बचपन सा
मिट्टी का घरौंदा बनाता हुँ।
तुम आकर मार देना ठोकर
मेरे अरमानों को
मेरे सपनों को
मेरे घरौंदे को।।
जानते हो ना!!!
घरौंदें की चार दीवारी
टूटती है ऐसे कि जैसे तुमने
मेरे सारे खत
फाड़ दिए हो तुने मेरे सामने।
घरौंदे की छत
आकर गिरती है जमीन पर
कि जैसे
मैं बेहोश होके
गिर पड़ा होऊँ।।
तुम्हारी ठोकर से
वह कागज की नाव भी
कुचल गई है ऐसे
जैसे दिल में अब साँसें भी
ना  बची हो मेरे।।

पर देखो ना!!
फिर से मैं सपने देखुँ
अरमान सजाऊँ
घरौंदा बनाऊँ
तुम ठोकर मारने तो
आओगे ना।
©® जाँगीड़ करन
10/03/2016_7:00 morning

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...