Friday, 11 March 2016

चाँद को निहारा जायें

आँसुओं को लेकर अब कहाँ को जाया जायें,
चलो पल दो पल चाँद को ही निहारा जायें।।

हर तरफ है यहाँ अब गम की परछाईयाँ,
कहाँ से खुशी का ठिकाना निकाला जायें।

वो कश्ती कागज की वो खट्टे बैर है कहाँ,
कैसे अब गिलहरी के पीछे पीछे भागा जायें।

कहाँ आ के ऊलझा हुँ समझदारी के फेर में,
चलो पतंग की डोर को फिर ऊलझाया जायें।

कहानी जिंदगी की बस सबब सवालों की है,
चलो फिर से नानी की कहानी को सुना जायें।

थका हुआ राही है 'करन' तो तलाश में तेरी,
तेरी ही गोद में सोकर 'स्वर' गुनगुनाया जायें।

©® जाँगीड़ करन
11/03/2016_ 06:35 morning

फोटो- साभार इंटरनेट

No comments:

Post a Comment

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...