Friday, 13 May 2016

आवाज का जादु

.....................आवाज का जादु......................
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जब दूर कहीं पे चिड़िया चहके लगता है कि तुम हो,
जब कहीं मंदिर में घंटी बजे तो लगता है कि तुम हो।

जब सूनी दोपहर में कहीं पेड़ की छाँव तलें सोया हुँ,
हवा से पतों की सरसराहट हो तो लगता है कि तुम हो।

कभी साँझ ढलें गाय रँभाती है तो लगता है कि तुम हो,
चुल्हें की खटपट आवाज से युँ लगता है  कि तुम हो।

स्कूल में जब मैं वर्णमाला के उच्चारण करवाता हुँ,
तो क से कबूतर की ध्वनि पर लगता है कि तुम हो।

नदियाँ के पानी की कल कल की ध्वनि में भी तुम हो,
कहीं हिरणों की पदचाप सुनँ तो लगता है कि तुम हो।

जब मोबाइल में बजती है तुम्हारी पसंदीदा रिंगटोन,
और स्क्रीन पर उभरता फोटो तो लगता है कि तुम हो।

जब तन्हाई की रात में बैचेन सोया चाँद को निहारता हुँ,
दिल की धक धक से कुछ ऐसा लगता है कि तुम हो।।

हाँ यह सब तेरी आवाज का ही तो जादु है करन,
चिड़िया रूबरू न सही पर युहीं लगता है कि तुम हो।
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©® जाँगीड़ करन KK
13/05/2015_5:00am morning

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