बचपन से ही तो वो सयानी होती है,
अरमानों की उसके कुरबानी होती है।
कभी माँ की ममता सी बन जाती है वो,
बहिन मेरी कुछ ऐसी होती सयानी है।
बन के जब वो दुल्हन पिया के घर जायें,
माँ भवानी की जैसे कोई कहानी होती है।
कभी बनी वो कल्पना तो कभी बनी सुनिता,
देश के लिये कुरबान इनकी जवानी होती है।
कौन कहता है कमजोर होती है बेटियाँ,
पिता की अर्थी ऊठाकर वो मर्दानी होती है।
नमन करूँ मैं बेटियों को बारंबार ही 'करन',
एक जिंदगी में छिपी कई जिंदगानी होती है।
©® जाँगीड़ करन kk
31/05/2016_01:00 pm
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