जूबाँ पर अपनी अब भी मेरा नाम लाते तो है|
कहती है सखियाँ उसकी वो शरमाते तो है||
कल रात ख्वाबों में वो अनायास ही मुस्कुराये थे,
लगता है मोहब्बत के दिन उन्हें भी याद आते तो है|
मेरे गीतों को गुनगुनाते हुए ही सोते है अब भी,
मेरे लफ़्ज आज भी उनकी जुबाँ पर इतराते तो है|
मालुम है उन्हें मैं देखुँगा चाँद में अक्स उनका,
इस खातिर वो चाँदनी रात में छत पर आते तो है|
कैसी दूरी कैसी मजबूरी उनकी यादे तो है 'करन'
हम भी गुनगुना के 'स्वर' प्यार को निभाते तो है|
©® करन जाँगीड़
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