Friday, 15 September 2017

A letter to swar by music 36

Dear SWAR,

Time make the situation, & situation create the art.... & Art....
Art is..…...........
It's not necessary to tell you...
You can understand yourself.......
......
हां तो,
सबसे पहले तो जिंदगी के हर पल में खुशियों की सौगात रहे यह दुआ दिल से करते हैं हम। बाकी मालूम तुमको भी है कि वक्त परीक्षा लेता रहता है तुम्हारी भी और मेरी भी.... हमारी ही नहीं सबकी लेता है... कभी पास रखकर तो कभी दुरियां बनाकर अहसास दिलाता है खुद के होने का, जरूरी भी है ना सब... बाकी खुद को समझने और खुद के होने का पता कैसे चलता....
और दुसरी बात.....
कला....
मनुष्य ने जन्म से ही कला का दामन थामा है, लकड़ी के पहिए और पत्थरों के औजारों से हुई शुरुआत आज कहां आकर पहुंची है..... और, कला मेरी नज़रों में अपने आप में तो उपजती नहीं इसके पीछे आवश्यकता सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण बात होती है.....
और
इसी आवश्यकता ने हमें भी तो कुछ कला सीखाई है...... एक मान्यता है कि रसोई का काम संभालना औरतों का काम है पर अगर अब देखा जाये तो क्योंकि औरतों ने हर उस क्षेत्र में अपनी सहभागिता दर्ज की है... तो जरूरी नहीं कि रसोई का काम सिर्फ औरत ही करें.... आवश्यकता पड़ने पर पुरूष को भी काम करने से हिचकिचाना नहीं चाहिए....
अब आते हैं असली बात पर...... मैं तो बचपन से ऐसे माहौल में रहा हूं जहां रसोई से पाला पड़ा है और बचपन में तो किस्मत ने रसोई से जोड़ें रखा.... वो भी एक वक्त था शायद भगवान को इसकी अपनी स्क्रिप्ट में आवश्यकता थी इसलिए लिख दिया ऐसा ही बचपन.... खैर.. वो छोड़ो!!!
अब यह सुनो,
वक्त का चक्र......
पता नहीं कब क्या दिखा दें।
मेरा तो इस वक्त से जैसे कोई 36 का आंकड़ा है, कुछ न कुछ नया कारनामा दिखाता रहता है....
अभी पिछले सप्ताह वापस रसोईघर का मुंह दिखा दिया वैसे तुम्हें मालूम तो है ना रसोईघर का काम तो मुझे भली-भांति आता है.......
तो चलो आज तुम्हें रसोईघर का मेरा यह अनुभव बताता हूं...
सबसे पहली बात तो मुझे उलझन उन डिब्बों में हुई मालुम है ना 20 डिब्बे सब एक जैसे किसमे क्या रखा है कैसे मालूम हो। हर डिब्बे को उतार उतार कर देखता था कि जो चाहिए मिल जाएं..... पर एक बात बतायें तुमको इन डिब्बों को उतारते वक्त एक ख्याल तो आया ना दिल में... हां!! सच्ची में।।।
मैंने सोचा कि तुम यहां होओगी तो जब रसोईघर में काम करते वक्त उंचाई पर पड़े डिब्बों में से कोई डिब्बा उतारना पड़ा तो मुझे ही बुलाओगी ना.... और!! वो मौका भी गज्जब का होता.. तुम्हारे हाथ आंटें से लथपथ, जुल्फें ओढ़नी से बाहर झांकती हुई.... मैं खुद को रोक तो नहीं पाता ना....
और तुम भी मुझे नहीं रोक सकती.....
.......आज शरारत करने दो काम बाकी करेंगे कल...........
खैर.... यह मेरी एक कल्पना थी और कल्पना को तो किसी हादसे से भंग होना ही है... शायद तवे पर रखी रोटी जलने लगी है (मुझे तो नहीं मालूम पड़ा क्योंकि मैं तो तेरे ख्वाब में खोया था पर बाहर से आवाज आई मारसाहब रोटी जल रही है) और कल्पना की गाड़ी को रोक में जल्दी से गैस की तरफ भागा.... देखा तो चांद सी गोल और सफेद रोटी में चट्टानों सा काला निशान बन गया है.... हाथ से जल्दी ही उसको तवे से हटाकर साइड में रखा... और फिर बेलन चकले की आवाज आने लगी फिर.... खैर एक बात तुम्हें और बता दूं मुझे अभी भी पुरी तरह गोल रोटी बनाना नहीं आता है...
सुनो!!!
एक काम करें मैं तुम्हारी तरह गोल रोटी बनाना सीखता हूं तुम मेरी तरह बेइंतहा मोहब्बत सीख जाओ ना और...
और तो हर पल तुम्हारी जीत की दुआ करता आया हूं... अब यही चाहता हूं कि तुम्ही जीत जाओ... पता नहीं मगर..
शायद मेरी आवाज़ तुम तक पहुंचती भी है या नहीं...
खैर छोड़ो....
आगे सुनो,
सब्जी में जब मसालें को पकाता हूं तब छन छम छन की सी आवाज आती है जैसे कोई संगीत बजा हो, जैसे तुमने पाजेब पहने घर में कदम रखा हो, जैसे कि तुमने अपनी चुड़ियों को खनखाया हो....
और मैं युही पता नहीं किस धुन में खोकर बर्तन से चंग की धाप जैसे बजाने लगता हूं!!! इस इंतजार में कि कहीं से चहकती नाचती गाती हुई आ धमको तो....
तुम्हें मालूम है इसी धुन और तुम्हारे ख्यालों में खोयें रहने से स्कूल में अक्सर लेट हो जाता हूं... फिर वहां भी बहाना तुम्हारा ही बनाता हूं कि वो वहां से फोन आ गया तो रास्ते में बात करते हुए आ रहा था तो देर हो गई....
मालुम है ना....
झूठ भी कितने कायदे का बोल लेता हूं यह तो तुमसे ही सीखा है..... सच्ची मुच्ची!!!
कुछ परिस्थितियां बनती है रोज ही रसोईघर में अलग अलग तरह की.....
कभी तो तुम्हारी धुन में खोया रहा और सब्जी में नमक दो बार तो कभी बिल्कुल भी नहीं, कुकर की सिटी बजती तो तुम्हारा सिटी बजाना याद आता, और कढ़ाई में तेल गरम होने पर आती खुशबू मेरे घर को महकाती जैसे कि तुमने अपने होने का अहसास कराया हो......
खैर यह सब तो चलना है....
तुम सुनाओ अपना...
अपनी बकरियों का ख्याल रखती हो या नहीं?
तुम्हारे यहां जंगल में झाड़ अब और भी हरे हो गए हैं ना?
नदी नालों में साफ पानी आ रहा होगा ना?
देखना.....
उस पहाड़ी पर एक दिन मैं फिर आऊंगा इस तुम्हारे लिए घर से मैं खुद खाना बनाकर टिफिन पैक करके लाऊंगा.....
तुम..... खाओगी ना!!!!

With love
Yours
MUSIC

©® Karan KK
15_09_2017___7:00AM

1 comment:

  1. बहुत शानदार अभिव्यक्ति👌

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