Sunday, 29 April 2018

A Letter to swar by music 47

Dear Swar,

अक्सर कानो में और मोबाइल की स्क्रीन पर एक सवाल आता है ... कौन है वो ?
जवाब में खामोश हो जाता हु में...
या उस जगह से हट जाता हु कि जवाब नहीं देना पड़ेगा.....
!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
मगर जब खुद मेरे जहन में एक सवाल पैदा होता है तब कि तुम हो कोन?
कहा हो तुम ?
तुम क्यू हो ?
और जब ये सवाल मुझे ज्यादा ही परेशां करते है तो जवाब में तुम याद आती हो....
मुझे पता है तुम्हारे पास ही है इन सारे सवालों के जवाब....
अब में तुम्हे तो सीधे नहीं कह सकता ना कि तुम बता दो कि कोन हो ?
क्यूंकि तुम्हे बताना होता तो मेरे लिए इतने सवाल ही खड़े नहीं होते.....
खैर ये छोडो......
लोगों के सवाल है और मुझे तो जवाब देना है मेरे जवाब कुछ यु बनते है देखो तो .....
सुनो,
नदी की धार के संग बहती पानी की चमक हो.. में अक्सर तुम्हे ढूंढता हु नदी के किनारे खड़े होकर..... दूर जहाँ तक मेरी नजर जा सके वह तक.... तुम हर उठती लहर के साथ आती हो और जैसे ही पानी की धार कुछ धीमी हुई जाने कहा खो जाती हो .... तुम्हारे दिखना या नहीं दिखना मायने नहीं रखता है मेरे लिए ... बस मुझे मालूम है तुम्हारा वजूद छुपा है पानी में.... समय पर चमकाना और फिर गायब होना यह तो तुम्हारी अदायें है....
!!!!!!!!!!
या में यु कह दू तुम दूर आकाश में चमकता कोई सितारा हो..... और में धरती पर हर रात तुम्हे निहारता हुआ एक आवारा हु..... जो चाहता है कि वो तारा उसके पास आये पर यह भी नहीं चाहता कि टूटकर आये.... हा जब रातें बादलों भरी होती है और सब तारे छुप जाते है तब मन में एक अजीब सी बैचेनी रहती है कि कही तुम...........
!!!!!!!!!
और में तुम्हे अगर कोई खिलता फूल कहू तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी... हा... तुम्हे उसी बगीचे में खिलता हुआ गुलाब हो जहाँ मेरा आना शायद कभी कभार होता है या शयद सालभर तक भी न आ पाऊ वहा... मगर जब भी आता हु तुम्हे खिला हुआ ही देखना चाहता हु.... तुम्हे हर पल ही पास तो चाहता हु मगर तुम्हे तोडना भी गलत है न मुरझा न जाओगे तुम?
और में हर पल भी तो बगीचे में रुक नहीं सकता न......
बस जहन में तुम्हारी सुगंध लिए अगली मुलाकात का इंतज़ार करता हु....
!!!!!!!!!!!!!!
और अक्सर में तुमको खिड़की के पार से आती ठंडी हवा में बसी खुसबू जान लेता हु..... इस गर्मी के मौसम में भरी दोपहर में जब खिड़की के पास बैठता हु ठंडी हवा ऐसे छूती है जैसे कि तुम्ही ने सर के बाल सहलाए हो अभी अभी ........... अक्सर मेरी दोपहर की चाय ठंडी हो जाती हो जाती है... इन्ही ख्यालों में पर जानती हो तुम चाय में भी तुम्हारे अहसास की खुश्बू भर जाती है और फिर में खुद को कितना तरोताजा महसूस करता हु जिसका तुम्हे अंदाज़ा भी नहीं होगा........
!!!!!!!!!!!!!
अब अगर तुम्हारी इज़ाज़त हो तो तुम्हे चिड़िया कह दू?
हा...
सबसे प्यारा नाम...
सबसे दिलकश भी....
और इतना सरल भी की हर सुबह से लेकर शाम तक बस जुबान पर ही रहता है.....
हर सुबह जब तक मेरी आँख खुलती है पास के पीपल के पेड़ से तुम्हारी आवाज़ सुने देती है मुझको... में आँखे खोलते ही उधर ही देखता हु मगर तब तक तुम उड़कर दूर आकाश में परवाज़ भर रही होती हो.... में तो खुश होता हु तुम्हे ऐसे उड़ते हुए देखकर ही.... मुझे मालूम होता है की जब तुम थक जाओगी फिर से उसी पेड़ पर आकर बैठोगी और फिर से गीत सुनाओगी.... में भी पागल ही हु बस तुम्हारे गीत की धुन में खोया सो जाता हु और फिर से उड़कर कही चली जाती हो....
मगर मुझे यह भी मंजूर है....
बस ये गीत युही सुनाते रहो.....
!!!!!!!!!!!!!!
अब अंत में......
जबकि हकीकत के धरातल पर शायद में अकेला हु जो ख्वाबों की पौध के भरोसे ही चलता रहा हु और कब तक चलूँगा पता नही......
में तुम्हे अपनी जिंदगी कहूँगा....
हर सुबह से लेकर शाम तक की मेरी सारी हकिकत के पीछे छिपी तुम्हारी मासूमियत.....
हर लम्हे में याद आती तुम्हारी सूरत.....
महफ़िल में तनहा दिखाती तुम्हारी नाराज़गी.....
और तन्हाई को महफ़िल बनाती तुम्हारी यादें.....
बस हर रोज में जीता हु.....
हर हकीकत से रूबरू होकर भी उसे अजरंदाज करते हुए....
हा....
मेरी जान.....
तुम जिंदगी हो जिसके हर पहलु में बसने का सपना लिए ही तो हर लम्हा गुजरता है मेरा......
>>>>>>>>>
लिखने को काफी है अभी...
मगर मे जानता हु तुम्हारे पास वक़्त की कमी है....
इसलिए फिलहाल इतना ही....
....
हमेशा की तरह खुश रहना...
मेरा क्या है वही...
....
में और मेरी कलम अक्सर तेरे लिए ही सोचते है...
....
with love
yours
music

.........
wriiten by
jangir Karan KK
29/04/2018......21:30PM

1 comment:

  1. Hello G
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