Dear swar,
गणित तुम्हारी आदत है, मगर मुझे तो यूं लगता है कि तुम्हें गिनती भी नहीं आती होगी, हैरान होने की बात नहीं है!! तुम्हें कैलेंडर में तारीख देखना भी नहीं आता शायद?
पूरा एक साल निकल गया है, एक साल मतलब कि पुरे 365 दिन यानि कि 5,25,600 मिनिट्स... नहीं है है ना याद?
हां,
तुम गणित को सिर्फ आंकड़ों का खेल मानती हो, मगर मैं तुम्हारी इस गणित को जिंदगी से जोड़कर देखता हूं! उस वक्त से जब तुमने पहली बार आवाज दी थी, हां वो पल, दिन, वार, समय... उस पल की हर एक बात, कितने अक्षर थे वो भी याद है!
लेकिन तुम्हें तो इतना भी याद नहीं कि एक साल में तुमने मेरी किसी बात का जवाब नहीं दिया....
अब तुम्ही बताओ गणित कैसा है तुम्हारा?
.......
और इधर आजकल...
हर तरफ से वक्त ने छीना है सुकून जिंदगी का,
मैं वक्त तुम्हें ढूंढ चैन पाने निकला हूं।
....
आवाज़ नहीं दी होगी तुमने,
शायद मेरा सुनना भी वहम था।
.....
कल फिर तुम्हें सोचना है,
कल फिर तुम्हें चाहना है।
आज की खातिर भला
क्यों तुम्हें भुलाने की कोशिश करूं?
……….....................................
अब सुनो प्रिये,
यह जिंदगी मेरी रेल की पटरी सी हो चली है! हां, तुमने गणित में देखे है रेल और पटरी के सवाल...
रेलगाड़ी की लंबाई, पटरी की लंबाई, चाल, समय, सापेक्ष चाल आदि आदि!! हां मेरी जिंदगी के गणित में भी रेल की पटरी से सवाल उलझे हैं.... पटरी से कितनी रेलगाड़ियां गुजरती है, कौनसी कितनी लंबी थी, क्या गति थी, आमने-सामने से कब कौनसी रेल गुजरी? जिंदगी की पटरी इन सवालों से ज्यादा अलग तरह के अहसासों के उलझन में है!
हां....
हर गुजरती रेलगाड़ी के निकल जानें की दुआ करती है वो, क्योंकि रेलगाड़ी की गड़गड़ाहट भी उसे तन्हा सफर देती है जिसमें उसे कुछ और नहीं सुनाई देता...
क्योंकि पटरी को एक बात तो पता है रेलगाड़ी का तो गुजरना तय है वहां हमेशा के लिए रुकने से तो रही....
और पटरी को अपनी नियति भी पता है, मगर वो समझती कहां?
हर गुजरती रेलगाड़ी के साथ एक और ख्याल आता होगा पटरी के मन में कोई रेलगाड़ी ऐसी भी हो जो हर क्षण के लिए यहीं रुक जाये...
हां, वो रेलगाड़ी आती जरूर है मगर रुकती कहां!
पल भर में फिर रवाना हो जाती है, जब उसमें जान है चलना है..... जिस दिन थक जायेगी तब जाके कहीं रुकेगी, जब उसको जंग लग जायेगी तब वो रुकेगी शायद...
पर अब उसमें भी एक डर है, तब तक वो पटरी खुद पुरानी और कबाड़ न हो जाये कि निकालकर कबाड़ख़ाने में डाल दी जाये कहीं.... और बस फिर तो!!!
रेलगाड़ी से मिलन का ख्वाब भी ख्वाब नहीं, एक बीता हुआ कल रह जायेगा...
यहीं जिंदगी है..
जिसके सवाल ऐसे हैं जिनके जवाब तुम्हारी गणित के पास नहीं है, जवाब तुम्हारे ज़हन में है...
पर तुम अपने ज़हन की सुनती कहां हो,
तुम्हें तो गणित के सुत्रों पर चलना है ना!!!
..........
खैर इस एक साल में दो बातें तो महसूस करी है....
पहली, बदलना बहुत आसान है मगर, बदलने वालों को बदलना मुश्किल है जरा।
दुसरी, प्रेम इंसान को जीने के अलग अलग तरीके सीखा देता है।
!!!!!!
और हां,
एक खुशखबरी सुनाये!!!
हम जिंदा है
शरीर से नहीं मन से भी!
कभी कागज पर
कभी दिलों में
हां,
जिंदा है हम
पंछियों की उड़ान में
स्कूल जाते बच्चों की मुस्कान में
जिंदा है हम....
!!!!!!!
With love
Always yours
Music
©® Karan KK
10_05_2018___15:00PM
- Photo from Google with due thanks
अद्भुत अतिसुंदर
ReplyDeletethank you
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