अक्सर आंखें
ढूंढ ही लेती
उदास होने की वजह...
मौसम जरूर
Jangir Karan |
बरसात का है,
खिलने का है, मिलने का है
मगर,
उस टूटे हुए पत्ते को पूछो,
क्या मौसम उसको भाता है,...
उसकी नियति सड़ना है,
गलना है, कटना है......
खिलना तो वो भूल गया,
सावन से वो रूठ गया।
मगर हर मौसम भी
उसको ऐसे ही चुभता है,
पानी से गलना,
सूरज से जलना,
हवा से भटकना..
कुछ और नहीं वो कर सकता है,
बस मन ही मन सिसकता है।
करुणाई तो देखी उसने,
हवा उसे सहलाती है,
मिट्टी प्यार जताती है,
नदी उसे झुलाती है।
मगर क्या यह करुणाई,
फिर उसे जोड़ पायेगी,
पीले पड़ते चेहरे पे,
रंग हरा ला पायेगी.......
खूब समझता पत्ता भी,
ढांढस का सब खेल यह,
अपने अश्रु छिपा रहा,
जग से हाथ मिला रहा.....
मुस्कुराते जब उसको देखा,
मेरा मन भी मुस्काया!!!
अक्सर आंखें कह देती है,
क्या तुमने खोया, क्या पाया!!!!!!
©® JANGIR KARAN
17_07_2018____10:00AM
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