Sunday, 19 August 2018

A letter to swar by music 50

Dear swar, "किसी को पाने के लिए खुद का खो जाना, मानो न मानो मोहब्बत यहीं चीज है.........!!!! .. I respect you and your feelings. Actually the time was enable to blossoms the flowers of love between us. Perhaps we both were wrong............... First you got your way of life and now I am finding my own way without any destination............ So I think I should tell you something.... ........ काल के किसी खंड में (मैं समय और तारीख भी मालूम है पर लिखना ज़रूरी नहीं, तुम्हें खुद याद आ जानी है) तुमने सिर्फ अपनी इच्छाएं जाहिर की थी, वो इच्छाएं जो हर लड़की के ज़हन में अपनी जिंदगी को लेकर पनपती है, वे इच्छाएं जो हर समय कुछ ढूंढते रहने या कुछ पाने को मजबूर करती है..... मैं नादान था उस समय, समझ नहीं पाया था कि इशारे कभी सच जाहिर नहीं किया करते..... तुम्हें याद तो होगा तुम्हारे इरादों और प्रश्नों से बचने के लिए मैंने असफल सा प्रयास भी किया था..... मगर मैं भी इंसान हुं मेरी भी अपनी कमजोरियां होनी थी, कुछ सीमाएं होनी थी.......... बस वहीं से वक्त ने मेरी जिंदगी के पन्नों पर रंगीन स्याही दिखाकर काली सफेद रेखाएं खींचना शुरू कर दी और जैसा कि हर इंसान मन से कमजोर होता है, जो समझ नहीं पाता कि वास्तव में जो हो रहा है वो आगे क्या रंग दिखायेगा!! उधर वक्त अपनी ही रेखाएं बना रहा था और मैं इधर कल्पनाओं में जिंदगी को हसीन रंगों में सजाने की जुगत में था... कभी तुम्हारे चेहरे में चाँद ढूंढता तो कभी जंगल में खिलें किसी फूल का अहसास करता.... कभी चेहरा दूर क्षितिज सा लगता जिसका कोई अंत ही न हो..... तुम्हारी आँखें मुझे झील सी नजर आती कि हर वक्त इनमें डूबा ही रहुं..... कभी तुम्हारी आँखों में खुद को देखकर सँवरने की सोचता..... मेरे मन की इच्छाएं तुम्हारे काले घने बालों में बादल ढूंढ लेती थी, कभी चेहरे पर गिरी जुल्फों के पीछे छिपे चाँद का दीदार आँखें चाहती थी..... पर एक बात याद दिला दूं.... तुम्हें याद है न हम आज तक कभी अकेले में मिलें भी नहीं......(यहीं सच है जिसे कोई भी मित्र या पाठक स्वीकार नहीं करेगा)... हां... मैंने कई बार तुमसे जाहिर किया था कि तुम्हारे कान पकड़कर उमेठने का मन करता है...... तुम्हारे नाक संग चिकीविकी खेलने का मन करता है.... तुम्हारी जुल्फें खींचकर चिड़ाने का मन करता है......, पर कभी नहीं कर पाया... मतलब कि वक्त मौका ही नहीं दिया!! चलो छोड़ो...... ये वक्त की बातें हैं, दोष तुम्हारा या मेरा नहीं था! हां, तो मैं कहां था..... कल्पनायें... इन कल्पनाओं की अपनी वजह थी..... जब तुम्हें देखता आंगन में नृत्य करते हुए तो मन के कौनें में हिरणी बन फुदकती कुदती सी नजर आती थी... जब जब तुमने मेरे किसी गीत को गुनगुनाया मुझे यूं लगा कि , "जिंदगी-स्वर से बढ़कर कुछ भी नहीं है!".... तुम्हारी आवाज़ में खोया मैं फोन कट जाने पर भी फोन कानों से दूर हटाना भूल जाता था... मैं यकीन के साथ कह सकता हूं कि तुम आज भी उतना ही मधुर गाती हो जैसे पेड़ पर बैठी कोई कोयल राग सुना रही हो.... और तुम्हारी यह आवाज ऐसी ही बनी रहेगी... इन बातों से इतर....... तुमने और मैंने जिंदगी के सपने बुने थे, वे सपने जो हकीकत की जिंदगी से ताल्लुक रखते थे.... वे सपने मुझे तुम्हारा होने और तुम्हें मेरा होने पर गर्व का अहसास दिलाते थे..... हर सपने की नींव हम दोनों ने साथ रखी थी.... तुम्हारे हर सपने को मैंने अपना समझा था.... तुम्हारे सपनों की खातिर मैंने अपने सपनों को ही तोड़ा था..... मैंने वो सपना भी तोड़ दिया जिसके लिए तो मैं मरा जा रहा था... (DC).... बचपन में जब रेडियो पर RJ को सुनता या टीवी पर एंकर को देखता तो मन में ख्याल आया कि बनना तो कुछ ऐसा ही है.......... पर जब थोड़ा बड़ा हुआ और आगे पढ़ाई को जीवन से जोड़ कर देखा गया तो सबने यहीं सलाह दी थी कि Mass communication का कोर्स महंगा है और जॉब की सिक्योरिटी भी नहीं है... मैं भी अपनी पारिवारिक स्थिति से वाकिफ था.... पढ़ना मेरे बस में था, पर बाहर किसी शहर में रहकर खर्च वहन करना और परिवार को संकट में डालने की हिम्मत नहीं हुई थी..... फिर 2004 में जब कला वर्ग में पढ़ाई शुरू की तो सपना ही बदल गया.... पर दिमाग सपने कौनसे छोटे देखता है.... अब भी सपना तो बड़ा ही था... हां, अब यह था कि मेहनत खुद को करनी थी..... सपना था DC.. .. फिर वक्त ने मोड़ बदला.... सीनियर के बाद सबसे ज्यादा चाहने वालों ने भी जब BSTC की सलाह दी तो मुझे माननी पड़ी... मन में DC तो था ही........ BSTC की... 2012 में मास्टर जी बन गये.... नौकरी की खुशी में समय निकल पड़ा... पर सपना भूला नहीं था... तैयारी शुरू हो गई थी... इस बीच तुमसे मुलाकात...... तुम्हें भी सबसे ज्यादा इस DC पर बहुत आश्चर्य हुआ था न कि यह क्या है? जो केवल दो लोग जानते थे तुम्हें भी बताना ही पड़ा..... तुमने यह तक कहां था आपका सपना जरूर पूरा होगा............... और फिर तुम, मैं और सपना साथ...... पहली बार 2015 में पहली बार इसके लिए परीक्षा दी थी (केवल समझने के लिए की मुझे किस तरह तैयारी करनी पड़ेगी, मेहनत थी पर इतनी ज्यादा नहीं कि कोई उम्मीद इस परीक्षा से नहीं की थी, हां... पर परीक्षा देकर इतना तो समझ आ गया, यस!! आई केन डू इट)....... मैं लग गया था तैयारी में.... मगर वक्त शायद कुछ और चाहता था.... तुम्हें मजबूर किया वक्त ने और तुमने फिर.... वो शुरू किया जो मुझे एक शायर की तरह बनना पड़ा... उससे पहले मैंने कभी तुम्हारे लिए भी खुद ने नहीं लिखा था.... पर जब शुरू हुआ तो जैसा तुम जब बिहेव करती कलम वैसा ही पोजिटिव या निगेटिव.... कागज़ को रंग देती।। इससे पहले के 49 letters किसी न किसी घटना से जुड़े हैं जो तुमसे जुड़ी हो...... मैं बस सपने छोड़..... इधर खोया रहने लगा.... तुम नाराज़ तो मैं उदास, तुम खुश तो मैं खुश.... मगर कई दिनों पहले... वक्त ने एक झटके में तंद्रा तोड़ दी
ख्वाबों में खोया मैं हकीकत से रूबरू होकर काँप गया..... पीछे देखता हूं तो वो हसीन पल याद आते हैं और अब सब उजड़ा उजड़ा सा लगता है.... यहां से पांवों में अब और चलने की हिम्मत नहीं रहीं, ऐसा महसूस होता है जैसे जमीं ने मुझे रोक दिया है अपनी शक्ति से...……. आंखें आकाश को अब भी देखती है पर किसी उम्मीद में नहीं, बस शून्य में ताकती है कि इसमें ही कहीं समा जाऊं.............. पर इन सबसे इतर मेरे पास जीने की कुछ और वजह है, वो सबकुछ जिसने मुझे यहां तक पहूंचाया है, जो हर समय मेरे साथ रहें हैं....... मैं कैसे भी रहुं पर अब हारूंगा तो नहीं!! हां, अब से कोई मकसद नहीं, कोई सपना नहीं, सिर्फ रास्ता..... आखिर सांस तक चलने का इरादा है बस!!!
...................
जरा सी आहट हो तो
ज़िन्दगी कुछ ख्वाब बन लेती है,
पैरों में जहाँ रखने की
जहमत उठाया करते है सब,
ज़िन्दगी हर बार कोई
परिंदा बीमार रख लेती है.
समय कितना गहरा है,
आदमी का क्या है ,
रेत पर बने निशान भी 
आँखे संभाल लेती है.
अब तलक ढूंढ़ता रहा किनारे,
समंदर की लहरे अब 
मुझको संभाल लेती है.......
..... और अब मुख्य बात, तुम परेशान नहीं होना.... दोष तुम्हारा बिल्कुल नहीं है, हालांकि मेरे साथ बहुत गलत हुआ है इतना ज्यादा कि इस गलती को सुधारने के लिए अब वक्त नहीं है.... खैर रहने दो यह सब.... भगवान से दुआ करता हूं कि खुश रहो तुम और खुश रहने के लिए मुझसे दूर रहना जरूरी है इसलिए.... एक चेतावनी है दुनिया गोल है कभी न कभी आमना-सामना हो सकता है मगर मुझसे बोलने की हिम्मत भी मत करना अब वरना left hand सीधे तुम्हारे गाल पर पड़ेगा.... Good bye
Its only of mine Music ©® JANGIR KARAN DC 05_08_2018__08:00AM

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