एक दिन स्वप्न में खुद को स्वर्ग में पाया,
यहाँ पर भी दामिनी की आत्मा को तड़पते हुए पाया|
देखा जब उस अबला ने मुझको स्वर्ग में,
उसके दिल का दर्द जुबाँ पर निकल आया||
मानाकि हिंदुस्तान को डिजिटल इंडिया तो बना लिया है,
मानाकि चहुँ ओर उन्नति का बीज भी बो दिया है|
सारा विश्व नजरें गड़ायें हुए है आज भारत की तरफ,
हाँ फिर से तुमने कदम विश्वगुरू की ओर बढ़ा दिया है||
पर क्या लोगों के दिलों को तुम डिजिटल बना पाओगे,
सामने देख लड़की को बहिन की सी भावना ला पाओगे|
आज भी मासुमों की इज्जत से खिलवाड़ कर जाता हर कोई,
क्या इन दरिंदों पर अंकुश लगा पाओगे||
सुनकर पीड़ा दामिनी की आँखें मेरी भर आई,
क्यों नहीं बन पाते है सभी यहाँ सबके अच्छे भाई|
डिजिटल इंडिया ने भले ही आपस में हमको जोड़ दिया,
पर भावना भ्रातृत्व की हमने क्यों नहीं जगाई||
तो सुनो कहना दामिनी का यह अब तुम जान लो,
डिजिटल भले बनो पर अपनी संस्कृति को भी पहचान लो|
विश्वगुरू भारत में सदा ही मान हुआ है स्त्री का,
बढाओगे कदम उस ओर ही मन में यह ठान लो||
आओ डिजीटल इंडिया में अपनी भागीदारी बढ़ायें,
हिंदुस्तान को फिर से विश्व का गुरू बनायें|
पर बिन नारी सम्मान के यह सपना अधुरा है,
कहे कर्ण अब सुनो सभी नारी का मान बढ़ायें||
©® करन जाँगीड़