Tuesday, 27 October 2015

तलाश

यह दिल मेरा जिसकी तलाश में रहता है,
वो ही न जानें किसकी तलाश में रहता है|

वो देता है जख्म मुझको हरपल युहीं,
फिर वहीं मरहम की तलाश में रहता है|

वो खुद तो न जानें कहाँ ऊलझा हुआ है,
किसी और से मेरी मुलाकात में रहता है|

कोई जाकर के कह दें उनसे हाले दिल मेरा,
दिन रात अब तो उनका ही इंतजार रहता है|

वो समझता नहीं बैचेनी मेरे दिल की 'करन',
यह तो 'स्वर' की जुल्फों में गुमसूम सा रहता है|

©® करन जाँगीड़

Tuesday, 20 October 2015

ख्वाब तो ख्वाब है

उनकी घनी जुल्फों में हम खो जाने वाले है|
कहती है गालों की लाली वो शरमाने वाले है||

लगा के मेहंदी हाथों में अपने बैठे हुए है कब से,
कुछ इस कदर मोहब्बत वो हमसे जताने वाले है|

दिल लें चल आज फिर उनकी गलियों में,
सुना है वो बालों में गजरा लगाने वाले है|

छत पर देखा उनको सारे शहर ने जब से,
हुए बावले सब आज ईद मनाने वाले है|

देख के उनकी ये नाजुक सी अदायें,
हम भी अब थोड़ा 'स्वर' गुनगुनाने वाले है|

कितना सुंदर कितना प्यारा ख्वाब है 'करन',
जज्बात मेरे अब यहीं ख्वाब सजाने वाले है|

©® करन

Sunday, 18 October 2015

रेड लाइट एरिया

#रेड_लाइट_एरिया

इस चकाचौंध में रहती है भीड़ हर पल ही,
पर दम तो मेरा घुटता है यहाँ जिंदा हुँ बस युहीं|
आता है जब कोई नया ग्राहक देता है दिलासा,
बढ़़ा देती है बातें उसकी मेरी अभिलाषा युहीं||

पर वो तो ग्राहक है साहब समय से चला जायेगा,
पर मेरे मन का खालीपन फिर मुझे सतायेगा|
युहीं अब तो जिंदगी को ढो रही हुँ मैं,
मेरा हर एक सपना अब युहीं कुचलता जायेगा|

हाँ सपना देखा था मैनें कि राजकुमार आयेगा,
कहीं दूर इस दलदल से लेकर मुझे जायेगा|
पर कोई नहीं आया अब तक जो दिल की बात करें,
अरे साहब आप भी ग्राहक हो चलो अपना काम करके जाइयेगा|

मत देखो कि जिस्म मेरा किस कदर दर्द करता है,
इसी दर्द से सुबह और शाम को पेट भरता है|
मैं ही जानती हुँ कि मुझ पर क्या बीत रही,
जिस्म नहीं जब मन का खालीपन मुझको अखरता है|

युँ मीठी मीठी बातें करके अब न सताइये,
आये है जिस काम से वो काम करके जाइये|
मैं खैर मैं हुँ मेरी क्या इज्जत क्या आबरू,
आप सुनकर पीड़ा मेरी खुद को न सताइये||

©® करन

Thursday, 15 October 2015

दर्द का दरिया

मेरे साथ राह में तुम नहीं चल पाओगे,
मैं काँटों से छलनी हुँ तुम भी हो जाओगे|

मैं मुरझाया फूल हुँ कुचलने से फर्क नहीं पड़ता,
तुम कोमल सी कली हो सहन नहीं कर पाओगे|

रख सपनों को ताक में श्वास लें रहा हुँ मैं,
तुम मीठे सपनों को कैसे भुला पाओगे||

अगर जो सोचा मुझको कभी मोहब्बत की नजरों,
जिंदगी से तुम अपनी बेशक नफरत कर जाओगे||

मैं दरिया हुँ दर्द का करन तुम मौज समंदर सी,
बोलो क्या तुम फिर भी मुझको खुद में समा पाओगे||

©® करन

Thursday, 8 October 2015

खत का पुर्जा

ये झील का पानी भी
उदास है,तुम बिन
कौन अठखेलियाँ करें अब

ये खेत की मेड़ पर
घास भी उदास है, तुम बिन
किसकी पदचाप से झंकृत हो|

ये पंछी भी पेड़ पर
दुबक कर बैठे है, भोर में
किसका चेहरा देख कर चहकें|

वो हिरण भी आजकल
छलांगें नहीं भरता, तुम बिन
कौन उसे प्यार से खिलायें|

ये दीवारें हमारे घर की भी
कहाँ मुस्कुराती है, तुम बिन
खिलखिलाता भी तो कोई नहीं|

और मैं, मैं तो हैरान हुँ
आखिर तु इतनी
लापरवाह कैसे हो गई?

देख, अब बस भी कर
उदास हुँ मैं,
लिहाजा,
लौट के आजा|

©® करन kk

नर्तकी

#आँखों_देखी

पर्दे के पीछे का सच
..
..
सामने स्टेज पर
देखकर
मेरी हँसी
मेरी लचक
मेरी अदायें
हर कोई
करता है
वाह वाह
पर नहीं जानता
कोई भी
इन अदाओं में
कितना दर्द
कितनी जिल्लत
लेकर चलती हुँ

हाँ पर्दे के पीछे
छेड़ देता है
कोई साथी कलाकार
घूरता है ऐसे
जैसे नौंचने को हो तैयार
डर सा रहता है
हर वक्त जब जाती हुँ किसी
कार्यक्रम में देर रात

पर क्या करूँ पेट की आग है,
बुझानी तो है,
तुम तो दर्शक हो,
चलो देखो तमाशा,
बजाओ ताली,

मेरी तुम चिंता न करो,
मैं तो नर्तकी हुँ

©® करन KK

फोटो- साभार गुगल

Saturday, 3 October 2015

विषपान

ख्वाब जो छुटे हुए है पीछे उन्हें पुकार लुँ,
एक लम्हा बचपन का फिर से गुजार लुँ|

ऐ वक्त थोड़ा सा तो और ठहर जा,
मैं ऊनकी बिखरी हुई जुल्फें सँवार लुँ|

ये उदसियाँ ही भरी है महफिलों में,
हो जो मुस्कान थोड़ी सी मैं भी बुहार लुँ|

कई दफ़ा दर्द दिया है मैनें लोगों को,
देकर मुस्कान सबको मैं भूल अपनी सुधार लुँ|

विषपान करने को कोई भी तैयार नहीं 'करन'
चल खुद ही हलाहल को हलक में ऊतार लुँ|

©® करन जाँगीड़

Friday, 2 October 2015

मेरा डिजिटल हिंदुस्तान

एक दिन स्वप्न में खुद को स्वर्ग में पाया,
यहाँ पर भी दामिनी की आत्मा को  तड़पते हुए पाया|
देखा जब उस अबला ने मुझको स्वर्ग में,
उसके दिल का दर्द जुबाँ पर निकल आया||

मानाकि हिंदुस्तान को डिजिटल इंडिया तो बना लिया है,
मानाकि चहुँ ओर उन्नति का बीज भी बो दिया है|
सारा विश्व नजरें गड़ायें हुए है आज भारत की तरफ,
हाँ फिर से तुमने कदम विश्वगुरू की ओर बढ़ा दिया है||

पर क्या लोगों के दिलों को तुम डिजिटल बना पाओगे,
सामने देख लड़की को बहिन की सी भावना ला पाओगे|
आज भी मासुमों की इज्जत से खिलवाड़ कर जाता हर कोई,
क्या इन दरिंदों पर अंकुश लगा पाओगे||

सुनकर पीड़ा दामिनी की आँखें मेरी भर आई,
क्यों नहीं बन पाते है सभी यहाँ सबके अच्छे भाई|
डिजिटल इंडिया ने भले ही आपस में हमको जोड़ दिया,
पर भावना भ्रातृत्व की हमने क्यों नहीं जगाई||

तो सुनो कहना दामिनी का यह अब तुम जान लो,
डिजिटल भले बनो पर अपनी संस्कृति को भी पहचान लो|
विश्वगुरू भारत में सदा ही मान हुआ है स्त्री का,
बढाओगे कदम उस ओर ही मन में यह ठान लो||

आओ डिजीटल इंडिया में अपनी भागीदारी बढ़ायें,
हिंदुस्तान को फिर से विश्व का गुरू बनायें|
पर बिन नारी सम्मान के यह सपना अधुरा है,
कहे कर्ण अब सुनो सभी नारी का मान बढ़ायें||

©® करन जाँगीड़

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...