ख्वाब जो छुटे हुए है पीछे उन्हें पुकार लुँ,
एक लम्हा बचपन का फिर से गुजार लुँ|
ऐ वक्त थोड़ा सा तो और ठहर जा,
मैं ऊनकी बिखरी हुई जुल्फें सँवार लुँ|
ये उदसियाँ ही भरी है महफिलों में,
हो जो मुस्कान थोड़ी सी मैं भी बुहार लुँ|
कई दफ़ा दर्द दिया है मैनें लोगों को,
देकर मुस्कान सबको मैं भूल अपनी सुधार लुँ|
विषपान करने को कोई भी तैयार नहीं 'करन'
चल खुद ही हलाहल को हलक में ऊतार लुँ|
©® करन जाँगीड़
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