पोस्टमार्टम ऑफ लाइफ............
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Dear swar,
सर्वप्रथम तो शुक्रिया कि तुम ने मेरे जन्मदिन पर मुझे शुभकामनाएं दी।
आज लगभग चार महीने बाद तुम्हारी तरफ से कोई लब्ज सामने आया है।
कुछ पल के लिए तो मुझे यकीन नहीं हुआ कि सच में तुमने ही विश किया!
और हां तुमने आज इनबॉक्स भी चैक किया है देखा मेरे लफ्जों को!
ओफ्फ्फो मैं भी पागल हूं तुम्हें क्यों मेरे लब्ज समझ में आएंगे भला!!!!
फिर भी आज मैं बहुत खुश हूं। तुमने देखा होगा कि तुम्हारे प्रश्न का जो मैंने उत्तर दिया है उसे अब तक पूरी तरह निभाया है और देखना आगे भी मैं निभाता जाऊंगा!
देख लेना अपना इनबॉक्स जो कि मात्र गवाह है इस बात का तुम्हें बताने का!
बाकी यहां आकर मेरी डायरी देख लेना जो कि खुद-ब-खुद मुझसे अब तो बोलती है कि चलो स्वर लिखो!
और तुमने इनबॉक्स में न जाने क्या क्या भेजा है! सारा अंग्रेजी में!!
वह क्या है ना कि मैं हिंदी भाषी हूं। समझ तो आ गया है पर जवाब हम हिंदी में ही देते हैं।
किसी कवि की पंक्ति में संसोधन के साथ यह रहा जवाब----
मैं हिंदी भाषी खत हूं प्रिये,
तुम इंग्लिश का ईमेल प्रिये।
मैं गाँव का सादा सा इंसान,
तुम हो शहरी फिमेल प्रिये।
मुश्किल है अपना मैल प्रिये,
यह प्यार नहीं है खेल प्रिये।।
और हां हम यहाँ तुम्हारी यादों के साथ खुश है, बहुत खुश। तुम भी अपनी परिस्थितियों के बहाने में जरूर खुश होगी ।हो भी क्यों नहीं तुम जो चाहती हो वही तो कर रही हो ना।
एक बात कहूंगा----
मैं जानता हूं तुम्हारे कुछ ख्वाब बहुत निराले है।
तुम्हें उसके बारे में बता दूं---
तुम्हें जरूर वह मिल जाएगा जो दिल्ली वाली गर्लफ्रेंड छोड़ कर आया हो,
तुम्हें जरूर वह मिल जाएगा जो तुम्हारे साथ पप्पी सोंग गा सके,
तुम्हें जरूर वो मिल जाएगा जो तुम्हारे साथ नागिन डांस कर सके,
सब कुछ तुम जैसा चाहते हो वहीं हो जायेगा,
पर याद रखना मैंने पहले भी कहा है और अब वापस कह रहा हूं यह जीवन की राहें बहुत टेढ़ी मेढ़ी है, जब तक जिसके साथ खुश रह सको रहना , हम बिल्कुल परेशान नहीं करेंगे,
पर जब भी तुम्हें लगे तुम्हें वहाँ दुख है जीवन में, हर तरफ से निराशा दिखने लगे या जब सामने किसी दीवार से सर टकरा जाए और कुछ न समझ आ रहा हो तो, एक बार दिल से आवाज देना, यह गांव का नादान छोरा उस अंधियारे को चीर कर या दीवार के उस पार से दीवार को तोड़कर तुम्हारी हिफाजत करने जरूर आयेगा,
बस इक आवाज लगा देना तुम!!
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ह ह ह ह ह ह।।।
बहुत समझाने की कोशिश करता हूं खुद को, पर न जाने क्या हो गया है कि खुद को खुद की ही बात समझ नहीं आती है। बैठकर कमरे में अकेले बंद आंखों से तुम्हें ही देखा करता हूं। जानता हूं कि सब बेकार है फिर भी ना जाने क्यों--------
तुम से गुफ्तगू करने की ही चाह है दिल में,
तुम से बिछड़ने पर बची इक आह है दिल में।
जानती हो ना 'स्वर' कि लापरवाह है 'करन',
फिर भी देख इक तेरी ही परवाह है दिल में।।
फिर से शुक्रिया..........
अपने जन्मदिन पर तो इनबॉक्स जरुर चेक करना।
सिर्फ तुम्हारा
संगीत
©® करन kk
(05_01_2016_10:30pm)
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