तेरी तस्वीर को लिये जहन में निकल पड़ा हुँ मैं,
चेहरे की चमक से जहाँ में हीरे के ज्यों जड़ा हुँ मैं।
लोग यहाँ किताबों में ढूँढ रहे है इश्क को कब से,
रख के सर गोद में तेरी आँखों में इसको पढ़ा हुँ मैं।
मालुम है ना तुम्हें कि रुकने को कभी कहा था तुमने,
देख तो आज भी उसी मोड़ पर इंतजार में खड़ा हुँ मैं।
इक तुझ से जो मोहब्बत है साबित करने की खातिर,
सारी दुनियाँ से यहाँ पर खुद अकेले ही लड़ा हुँ मैं।
मेरी अमीरी के दिनों में महफिलें जवाँ थी बहुत,
आज गुरबत जो आई तो अकेला आ पड़ा हुँ मैं।
समय का तुफान गिराने को बैताब है कब से 'करन',
इक तेरी मुस्कुराहट के सहारे 'स्वर' जमकर खड़ा हुँ मैं।
©® करन जाँगीड़
09/01/2016_21:30pm
फोटो- साभार गुगल
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