#यादें
#नींव_का_का_पत्थर
............................................................
जी हाँ!!! सिंपल सी बड़ी बात, सिंपल तरीके से, 1995 से 1998 तक की प्राइमरी कक्षायें(1 से 4 तक) मैनें #राप्रावि__पिथलपुरा पढ़ी थी, वहीं से सीखा था क से कबूतर, ख से खरगोश आदि!! वहीं से सीखा जोड़, बाकी आदि, हाँ वहीं से सीखा कि ग्रुप क्या होता है, दोस्त क्या होते है? मस्ती कैसे करनी है, कब करनी है? हाँ सबकी नींव वहीं है, जो कुछ आज बन पाया हुँ या निकट भविष्य में बनुँगा वो सब इस स्कूल की मेहरबानी से ही हुआ या होगा। मैं अपने उन गुरूजी को प्रणाम करता हुँ।
हाँ तो..... आज काफी समय बाद मुझे वहाँ जाने का मौका मिला.... हुआ युँ कि मैं अभी नोडल स्कूल में पोस्टेड हुँ और #राप्रावि___पिथलपुरा सिंगल टीचर स्कूल है(और टीचर कौन, वहीं मेरे गुरूजी जिन्होनें मुझे यहाँ 1998 तक पढ़ाया था, #सुखसागर_जी), आज उन्हें आवश्यक कार्य होने से छुट्टी पर रहना था, तो नॉडल स्कूल की जिम्मेदारी होती है कि उस स्कूल संचालन की व्यवस्था करें, सो आज मुझे भेजा गया।
हाँ.........
तो अब शुरू करते है बात.........
जैसे ही स्कूल के गेट के भीतर घुसा तो वो बचपन की यादें आ खड़ी हुई, स्कूल की दीवारें कुछ बयाँ करने को दौड़ पड़ी हो जैसे। और याद आने लगा वो बचपन, दोस्तों के साथ की गई वो मस्ती, स्कूल का रंगरूप, सब कुछ आँखों के सामने एक फिल्म की तरह चलने लगा।।।
यहाँ पर स्कूल का अहाता अब बिल्कुल खाली है केवल घासफूस है, मगर मुझे अच्छी तरह याद है, यहाँ पर सामने हजारी फूल की क्यारियाँ थी, मैन गेट के दोनों तरफ कंडेर के छोटे छोटे पेड़ थे। चूने से बनी स्कूल की चारदीवारी आज भी वहीं है, हाँ कुछ जगह से टूट फूट गई है, स्कूल के पीछे ही प्लेग्राउंड जहाँ हम खो खो खेलते थे, खेलना भी क्या था बस एक मजा था गिरना और वापस ऊठकर दौड़ लगाना, शायद बचपन से जिंदगी जीने का हुनर सीख रहे थे।
स्कूल गाँव से कोई 200 मीटर ही दूर है, मगर इस दुरी में ही एक नाला है, बरसात के दिनों में यह नाला तेज बहाव पर होता है, उस समय इस पर पुलिया नहीं था, स्कूल जानें के लिये हम आठ-दस दोस्त एक दुसरे का हाथ पकड़ कर इस नालें को पार करते थे, कभी से शायद दोस्ती का मतलब समझने लग गया था, वो प्यारा सा साथ बहुत अच्छा था,सब अच्छी तरह याद है, मगर वो आगे ज्यादा नहीं पढ़ें और आज सभी अलग अलग जगहों पर अपने कामधंधे में व्यस्त है, जब भी मिलते है, बहुत बातें करते है, बहुत मजा आता है और आँखें भर भी आती है। कहाँ तो वो मौज मस्ती और कहाँ ये भागदौड़ भरी जिंदगी.....
खैर मैं अपने इस स्कूल और गरूजी को साथ ही साथियों को कभी भूल न पाऊँगा.....
#मेरी डायरी 16/07/2016.... 15:00 pm
और मैं, मेरी चिंता न कर मैं तो कर्ण हुँ हारकर भी अमर होना जानता हुँ
Saturday, 16 July 2016
मेरी नींव
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Alone boy 31
मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...
-
यादों के उस समंदर से भरके नाव लाया हुँ, जवानी के शहर में बचपन का गाँव लाया हुँ। झाड़ियों में छिपे खरगोश की आहट, कच्चे आमों की वो खट्टी...
-
महसूस जो कर लें मुझको तुमने धड़कन देखी है, जिसकी धुन को कान सुन रहे ऐसी करधन देखी है। और जमाने के रिश्तों की बात नहीं मालूम मुझे, जमी...
-
मुझे युँ आजमाने की कोशिश न कर। अंधेरा बताने की कोशिश न कर।। झर्रे झर्रे से दर्द ही रिसता है यहाँ, मेरे दिल को छलने की कोशिश न क...
No comments:
Post a Comment