Friday, 1 July 2016

दिल के अरमान

नफरत के खिलाफ लिये मोहब्बत की कमान बैठा हुँ,
टूट  चुके जो  कब के  लिये वो सारे अरमान बैठा हुँ।

जीत को बनाया है तुमने तो हमसफर जिंदगी का,
हार को गले लगाने का लिये  मैं  फरमान बैठा हुँ।।

चाँद की यह रोशनी रहने दो जमाने भर के हिस्से,
अमावस का लिये मैं सुना सुना बियावान बैठा हुँ।

हर एक को लड़ते देखा है सुधारस की खातिर यहाँ,
मगर हलक में उतार के जहर का इक जाम बैठा हुँ।

चालें  यहाँ हर  वक्त चली  जाती है मुझे गिराने की,
पर मैं ठहरा राही मस्ती का बनके अनजान बैठा हुँ।

कभी  जी भर  के भी  नहीं  देखा है  स्वर  तुमको,
करके  युहीं  मोहब्बत में  खुद को बदनाम बैठा हुँ।

©® जाँगीड़ करन kk™

No comments:

Post a Comment

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...