जिंदगी कुछ तेरे कुछ मेरे ख्वाब निराले,
जब लिखे वक्त ने अंधेरे तो कहाँ उजाले।
वो पल ज्यादा ही अजीब रहा होगा शायद,
कोई होले से बोला था मुझसे दिल लगा ले।
जब से चुराई नींद मेरी इक चिड़िया ने,
चाँद रोज कहता है कुछ तो नजर हटा ले।
कब होश रहता है ऐसे हालातों में जब,
वक्त के पाँव दबाते पड़ हो हाथों में छाले।
रहता क्यों तु हरदम ही गुमसुम सा करन,
कभी तो किसी बच्चे सा खिलखिला लें।
©® जाँगीड़ kk
24_08_2016____09:00AM
वाह दादा लाजवाव
ReplyDeleteशुक्रिया भाई।
Deleteसूपर्ब..
ReplyDeleteकोई जवाब नहीं..
बेहद उत्कृट सृजन !
जोरदार विन्यास..
शुक्रिया जी।।
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