चाँद कल रात मुझसे बात पुरानी बताने लगा,
गवाह है वो इश्क का मुझसे यह जताने लगा।
मैं तो सोया हुआ था तेरी यादों की चादर लपेटे,
दिखाकर तस्वीर तुम्हारी मुझको जगाने लगा।
तुम गये हो जब से जिंदगी से मैं रूठा ही रहा,
कुछ सपने अच्छे दिखाकर मुझको मनाने लगा।
तुम चाँद से अपने क्यों न गुफ्तगुँ कर लो,
कहकर के चाँद फिर खुद को घटाने लगा।
बातें जो बहकी सुनाता रहा चाँद मुझको,
मन भी मेरा मुझको फिर से हराने लगा।
©® जाँगीड़ kk
17_08_2016__17:00PM
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