मन के जीते जीत है!!!
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जी हाँ!! आप सबने भी यह कहावत सुन रखी है, पर क्या कोई वाकई मन को जीत पाया है?
हम देखते है कि यहाँ हर कोई दावा करता है कि उसने मन पर काबु पा लिया है लेकिन क्या वाकई में उनका दावा सही होता है। ऐसा भी नहीं है कि किसी ने यह कारनामा नहीं किया हो, मगर हर एक के दावे को तो सही नहीं माना जा सकता है।
हर कोई तो मन पर काबु नहीं पा सकता है ना,
आइये एक उदाहरण से समझते है.........
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एक बच्चा होता है जिसका मन एक विशेष खिलोने डायनासोर में लग जाता है जो कि उसे बाजार में दिखाई देता है। वो अपने पापा से उस खिलोने की जिद करता है, मगर स्थिति यह है कि उसके पापा उस बच्चे को वो खिलोना नहीं दिलाना चाहते है।
तो वो पिता बच्चे को उसके बजाय दुसरा खिलोना दे देते है, वो बच्चा भी खिलोना पाकर खुश हो जाता है, मगर सोचने लायक स्थिति तो तब बनती है जब कुछ समय बाद वो बच्चा उस खिलोने को फेंक देता है और फिर से उसी डायनासोर वाले खिलोने की जिद करता है, एक बार फिर उसके पापा बाजार से दुसरा खिलोना ले आयें, बच्चा फिर खुश, मगर कुछ समय बाद फिर से उस खिलोने को फेंक कर डायनासोर वाले खिलोने की जिद करने लगा। एक स्थिति देखिये अंत में उसके पापा ने हारकर डायनासोर वाला खिलोना दिला दिया, कुछ समय खेलने के बाद वो खिलोना टूट जाता है, मगर देखिये वो बच्चा अब उस खिलोने की जिद नहीं कर रहा।।
यह मन का कारनामा है।।।।।
यहीं बात हम खुद पर लागु करके देखे तो खुद को उस बच्चे सा पायेंगे।
जहाँ पर हमारा मन लग जाता है फिर वहाँ से हटाना मुश्किल हो जाता है या फिर नामुमकिन सा।
यह मन की गुत्थी बड़ी ऊलझी हुई है, जिसे समझना मुश्किल है और इससे भी मुश्किल है मन को समझाना। साथ ही मन की बात औरों को समझाना भी तो बहुत मुश्किल है, क्योंकि सामने वाला अपने मन की बात सुनता है। क्योंकि हम अक्सर वहीं करते है जो मन कहता है। फिर भी हम कहते फिरते है कि हम अपनी मर्जी के मालिक है जबकि हम मन के गुलाम है। तो आप खुद भी मान रहे ना कि मन को समझाना मुश्किल है।।
और मुश्किलें तो हमारी जिंदगी का हिस्सा है। जब मन को समझाना ही इतना मुश्किल है तो फिर दुसरी मुश्किलों से क्या घबराना?
क्योंकि मुश्किलें तो जन्म से हमारे साथ लगी है। हाँ हम हर मुश्किल का सामना करते है और जीतते भी है, तब हम बहुत खुश होते है क्योंकि मुश्किल पर विजय पाने से मन खुश होता है इसलिये तो हम खुश होते है।
एक बात तो है कि मन की गुत्थी को समझाना भले ही मुश्किल है मगर फिर भी बचपन से मुश्किलों को हराते हराते हम जीवन जीने की पहेली को सुलझाने में जुट जाते है और कोशिश करते है कि जीवन की पहेली सुलझ जायें। चाहे सफल हो या असफल हर एक व्यक्ति यहीं दावा करता है कि उसने जीवन की पहेली को समझ लिया यानि कि मन पर काबु पा लिया है मगर क्या वाकई कोई जीवन की इस पहेली को हल कर पाया है?
या फिर मेरी तरह ही सभी इन ऊलझनों में ऊलझे रहते है कि किस मुश्किल को कैसे आसान करूँ? और इसी भागदौड़ में हम जिंदगी के अंतिम पड़ाव तक पहुँच जाते है!!
मैं तो जिंदगी कि पहेली नहीं सुलझा पाया हुँ और न ही मन पर काबु करने में सफल हुआ हुँ,
अगर आप कुछ पा लेते है या समझ लेते है तो मुझे भी बतायें!!!
आपका करन....
10_08_2016_____14:00 PM
।।।।
(नोट- इस आलेख का मूल विचार बिंदु 2011 में विविध भारती से प्रसारित कार्यक्रम त्रिवेणी में रेडियो उद्घोषक युनुस खान के वो लफ़्ज है, जो आज भी मेरे कानों में गुँजते रहते है)
और मैं, मेरी चिंता न कर मैं तो कर्ण हुँ हारकर भी अमर होना जानता हुँ
Wednesday, 10 August 2016
मन के जीते जीत है।
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मन को समझने मे मैं भी असमर्थ बहुत असमर्थ 😷
ReplyDeleteमैनें नामुमकिन शब्द इसलिये ही लगाया है, हारना ही मंजूर है अब तो। 😂😂😂😂😂😂😂👇
Deleteमन को जीतना ही क्यों चाहते हो उसके साथ सामंजस्य बनाओ कदम से कदम मिलाकर चलना सीखो।
ReplyDeleteGjb
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