मेरे खत को पढ़ कर के मुस्कुरा रहे हो ना,
किस तरह मिलुँगा तुमसे शरमा रहे हो ना।
मन बहका बहका सा मेरा हर पल रहता है,
आँखों के प्याले से तुम पिला रहे हो ना।
तुमको तो मालुम है कि मैं क्या क्या सुनुँ,
कँगन झुमका कब से खनखना रहे हो ना।
ये ही काफी हो जायेगा कत्ल को मेरे तो,
मगर फिर भी जुल्फें गीली लहरा रहे हो ना।
तुम्हें ख्याल भी है कि तुम बिन उदास करन,
मगर दूर रहकर के तुम मुझे सता रहे हो ना।
©® जाँगीड़ करन KK
18/09/2016_8:00AM
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