Sunday, 25 September 2016

मुस्कुराहते हुए चल

अपनी पलकों में मीठे सपने बसाते हुए चल,
चाँद तारों से गहरी रात को सजाते हुए चल।

हैरान न हो कि  आस्तीन  के साँप  है यहाँ,
अपने  दम से तु  इनको  बजाते हुए चल।

लो वक्त ने फिर कोई आवाज दी है मुझको,
होठों पर तराना मोहब्बत का गाते हुए चल।

नफरत की आग में इंसाँ जला रहा खुद को,
घने  बादल  प्रेम के  तु  बरसाते  हुए चल।

राह में मुश्किलें तो हर पल आनी है करन,
करके सामना तु इनसे मुस्कुराते हुए चल।
©® जाँगीड़ करन KK
25/09/2016__16:00PM

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