Sunday, 16 October 2016

A letter to swar by music 11

Dear SWAR,

कभी कभी----
कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है कि जैसे तुझको बनाया गया है मेरे लिये.. मैं जानता हुँ तु गैर है मगर युहीं..... कभी कभी।
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तुम होती तो ऐसा होता.....
तुम होती तो सुबह सुबह जल्दी उठकर पास बैठ कर बहुत देर तक मेरे चेहरे को निहारती जैसे मैं कोई आठवाँ अजुबा होऊँ, हाँ वो तो है ही क्योंकि तुम शायद सोचती कि मेरे चेहरे पर गड्ढे ज्यादा है या बरामुला घाटी में.. फिर थोड़ी सी मुस्कुरा कर... चलो आगे रहने दो......
तुम होती तो सुबह आँख खुलने से पहले तुम्हारे कोमल हाथों से मेरे चेहरे को सहलाने की कोशिश करती, फिर देखती कि चेहरा तो ऊबड़ खाबड़ पहाड़ी सा है, तो फिर नाक पकड़ कर झकझोर देती कि अब तो उठ जाओ जी!!
तुम होती तो सुबह सुबह उठाकर कहती देखो जी चाय मैं तभी बनाऊँगी जब तुम मेरे साथ किचन में आओगे... यह भी कोई बात है भला मैं किचन में क्या करता... और तुम कहती कि मैं किचन में हमारी सेल्फी लेकर फेसबुक पर अपलोड करती और कहती कि आप किचन में मेरी कितनी मदद करते है... सहेलियाँ बहुत चिड़ती इससे..... अरे!!!! और मेरे फ्रेंड मेरा सर्जिकल स्ट्राइक करेंगे उसका क्या.... वो तुम संभालना... बोलो चाय पीनी है? हाँ!! तो चलो!!! हे राम!!!! उठा ले!!! अरे इसके फेसबुक अकाउंट को उठालें!!!!!!!!
......
कभी कभी मेरे दिल में.........
कि तुम होती तो ऐसा होता.. तुम होती तो सुबह नाश्ते की टेबल पर कोई न कोई डिमांड लेकर तैयार रहती। देखो जी!! पड़ोस की जो मयुरी भाभी है ना उसके पास एक स्पेशियल जोड़ी झुमके है वो सबको बताती फिरती है, मुझे भी वैसे ही चाहिये। और तब मैं कहता कि अगले महीने के बजट में एडजस्ट करेंगे। एक बार तो तुम उदास होकर ऐसे देखती जैसे कि मैनें सालभर बाद की कह दिया हो.... पर तुम अगले ही पल कुछ सोचकर कहती कि आपका टेबलेट भी तो काफी पुराना हो गया है और चलाने में दिक्कत आती है.. ऐसा करते है अगले महीने तो आपके नया टेबलेट लायेंगे फिर उसके महीने झुमके ले लेंगे... और मेरे पास अभी झुमके है तो सही.....ओहो!!! जानती हो ना!!! तुम पर इतना प्यार आता मुझे कि बाहों में लेकर सीधे बाजार की ओर दौड़ पडुँगा और तुम्हें वो झुमके दिला दुँ..... और इन बातों में नाश्ता कब खत्म हो जाता पता ही नहीं चलता और ऑफिस जानें का वक्त हो जाता.......
तुम होती तो ऐसा होता..... तुम होती तो ऑफिस जाते वक्त हिदायत देती कि गाड़ी धीमे चलाना और ऑफिस से आते वक्त करैले लेते आना... जबकि तुम्हें पता होता कि करैले के नाम से मुझे ऊब आती है... पर तुम!! हाँ तुम्हें यह भी पता होता कि करैले का ज्यूस मेरे लिये कितना जरूरी है... तुम्हें डर होता ना कि मैं मोटा हो गया तो तुम्हें अच्छा नहीं लगेगा.... हाँ तो..... और इन्हीं हिदायतों के साथ मुस्कुराते हुए हाथ हिलाकर बाय करती और हवा में..... चलो रहने दो... मैं भी कितना बुद्धु हुँ!!!!
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तुम होती तो ऐसा होता...... तुम होती तो ऑफिस पहुँचने के कुछ देर बाद ही फोन करती और पुछती कि कैसे हो?
अरे!!! अभी तो तुम्हारे सामने से आया हुँ!! मगर तुम तो तुम हो ना!! तुम्हारा प्यार ही पूछने को मजबूर करता है ना तुम्हें...
और तुम फोन पर एक हिदायत जरूर देती कि खबरदार!!! जो अपने हिस्से का खाना ऑफिस में किसी को खिलाया तो और खिलाना हो तो बोल देना मैं एक्स्ट्रा चपाती रख दुँगी......
कि तुम होती तो ऐसा होता..... तुम होती तो जब मैं ऑफिस से लौटता तो तुम दरवाजे पर मेरी राह करते हुए मिलती जैसे कि मैं सालभर बाद लौट रहा होऊँ!! तुम कहती जरूर कि इतनी देर रास्ते में कहाँ रूक गये!! हाँ कोई दोस्त मिल गया होगा!! मेरी तो तुम्हें चिंता ही नहीं!! और भी सवालों की झड़ी... सब्जी लायें!! नहीं लायें तो चटनी से खा लेना... करैले लायें!! अरे!!! लायें कि नहीं.... और देखो एक दिन में ड्रैस गंदी कर दी!! ऑफिस में बच्चों की तरह खेलते हो क्या? ..... हे राम!! कब सुधरोगे.....
और हाँ.... सुबह जो पैंट धोयी उसकी जेब से सौ रूपये निकलें;;; कितने लापरवाह हो गये हो.............
इतने सवाल!!! मैं!! मैं तो सिर्फ तुम्हें ताकता.. किसी सवाल का कोई जवाब नहीं सूझता मुझे बस उस समय तो तुम्हें देखना अच्छा लगता... तुम्हारी सारी शिकायतें सुनने का मन करता.... तुम्हें भी पता होता कि कोई जवाब न मिलना.. पर सवाल रोज करती।।।
अरे!!!! तुम्हें चाय नहीं पीनी है, चलो चाय पी लो पहले.... फिर थोड़ा घूमने चलते है....
और...... तुम फटाफट अंदर भाग जाती चाय बनाने और फिर चाय की चुस्कियों के साथ वहीं नौंकझोंक.......
तुम होती तो ऐसा होता.... तुम होती तो शाम को वॉकिंग पर जाते समय मेरा हाथ ऐसे पकड़ती जैसे कि एक बाप छोटे बच्चे को मैले में घुमाते समय पकड़ता है, कि कहीं खो न जायें।
तुम होती तो ऐसा होता..... तुम होती तो शाम को खाना बनाते वक्त मुझे पास बैठने को कहती! हाँ!!! तुम ऐसा क्यों करती मुझे मालुम है.... बताऊँ!!! चलें जाने भी दो... तुम भी सोचोगी कि हर बात सबको बता देता हुँ......
खैर!!! शाम ढले छत पर हम तुम चाँद को निहार रहे होते, तुम उस चाँद को और मैं!! मैं मेरे चाँद को...... उस दुधिया चाँदनी में तुम कितनी हसीन लगती ऐसे मैनें पहले कभी देखा भी तो नहीं.... जरा बता देना तुम.
और फिर जब सोने को चलते तो तुम उस समय मेरे हाथ से टेबलेट छीन कर रख देती और कहती क्या पूरे दिन इस पर ही लगे रहते हो कभी मेरे दिल की बात भी सुन लिया करो और फिर तुम बताने लगती..... क्या???? अपने दिनभर की कामकाज की चर्चा और साथ तुम्हारे द्वारा देखें गये टीवी सीरियल की कहानियाँ.... मुझे बड़ी हँसीं आती!! पर मजा भी आता सुनने में, क्योंकि तुम जो बता रही होगी!! और तुम्हारी ऐसी बातें सुनते सुनते ही मुझे कब नींद आ जाती पता ही नहीं चलता.... और जब मैं सो जाता तो तुम भी लाइट्स ऑफ करके सो जाती!! मगर शायद तुम्हें नींद न आती।। तुम्हें कल की भी चिंता होती ना!!!
हाँ तुम होती तो..... तुम होती तो ऐसा होता.. मगर यह न हो सका.. न हम तुम मिल सकें... न मैं चैन से सो सका.. और शायद तुम भी न सो सकी.... बस हम दोनों नदी के दो छोर की तरह एक दुसरे से दूर है..... और किनारों का मिलन असंभव तो नहीं पर बहुत मुश्किल है.. .. मगर यह दिल कहता है कि एक दिन.. एक दिन हम जरूर मिलेंगे इन किनारों की तरह... पानी के द्वारा लाई गई रेत से धीरे धीरे समुद्र भर जायेगा और फिर एक दिन दोनों किनारे एक हो जायेंगे......
हाँ मगर यह भी एक ख्वाब ही तो है.........
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हाँ मगर यह भी इक ख्वाब ही तो है,
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खैर!!!
अपना ख्याल रखना.... अपनी आवाज की तरह...

सिर्फ तुम्हारा
संगीत
.......
©® जाँगीड़ करन KK
16/10/2016___ 6:00AM

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