Dear SWAR,
First of all happy Diwali....
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हाँ तो तुम्हारे पिछले खत में तुमने सिर्फ एक खाली कागज भेज दिया था, शायद थोड़ी खफा हो या तुमने खत लिखा तो है मगर हड़बड़ी में कहीं वो रह गया हो और खाली कागज भेज दिया हो...... हो सकता है क्योंकि आजकल दीपावली की सफाई चल रही है और घर के सब सामान इधर ऊधर रखे जा रहे हो तो तुमने भी शायद भूल से कहीं रख दिया हो... तुम कितनी भूलक्कड़ हो यह तो मैं जानता हुँ। एक बार तुमने भूल से खत की जगह अपने घर का बिजली का बिल भी तो भेज दिया था... खैर ये छोड़ो.. मैं खाली पन्ने से भी तुम्हें पढ़ सकता हुँ.. तुमने कितने सलीके से इसे समेटा है.. पन्ने के ऊपर तुम्हें हाथ की रेखाओं के निशाँ.... पन्ने को समेटने का अंदाज...और पन्ने से आती एक दिलकश खुशबु..... काफी है मेरे समझने के लिये कि मोहब्बत तो तुम अब भी करती हो.... वो भी बेइंतहा...
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खैर... सुनो!! हम भी यहाँ दीपावली की सफाई में जुटे है.. दो तीन दिन से... कहते है कि साफ सफाई अच्छी हो तो लक्ष्मी जी जल्दी आयेंगे.. पर मुझे तुम(सरस्वती पुत्री) चाहिये... और तुम भी वैसे हमें खुश देखकर और साफ सफाई देखकर ही तो आओगी ना...... चलो यह तो मैं बाद में और लिखता हुँ, पहले एक बात सुनो।।।
साफ सफाई के दौरान मुझे एक किताब मिली जिसमें कुछ कहानियाँ है तो उसमें से एक छोटी सी कहानी तुम्हें सुनाता हुँ.....
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"धीरे धीरे हो जायेगा प्यार बलिये".
ये उस समय की बात थी जब भारतीय समाज कबीलों में बँटा हुआ था। अलग अलग भू प्रदेश पर अलग अलग कबीलों का साम्राज्य था। मगर चारों तरफ शांति थी, कोई कबीला एक दुसरे की सीमा पर अतिक्रमण नहीं करता। उसी समय के दौरान पर मेवाड़ में भी भील कबीले का आधिपत्य था, भील कबीले के सरदार किंजाल थे, वो बहुत ही विनम्र, प्रजा प्रेमी और वीर सरदार थे। उनके दरबार में एक प्रधानमंत्री थे जिनका नाम जयदीप था उनका एक लड़का था धनुष। धनुष के नाम की चर्चा चारों तरफ थी, क्योंकि वो बहुत ही बहादूर, होनहार और चपल बालक था, अभी उसकी उम्र मात्र पंद्रह वर्ष थी मगर अभी से उसमें राजसी लक्षण दिखने लगे थे, वो अपने पिता के साथ दरबार में आता रहता इसलिये था। राजा के दरबार में एक वैद्यराज थे कस्पल्य, जो बहुत ही पुराने राजवैद्य थे, दरबार के प्रति समर्पित, सेवा में तत्पर। इस उम्र में भी वो एकदम चुस्त रहते थे। इतनी फुर्ती देखकर ही सरदार ने आज कर उन्हें दरबार में बनायें रखा था। वैद्यराज और जयदीप के बीच अच्छी दोस्ती थी, दरबार में दोनों साथ आते थे , साथ बैठते थे।
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जब वैद्यराज ने धनुष को देखते तो उनके मन में एक विचार आता कि लड़का तो बड़ा ही कमाल का है क्यों न अपनी पौत्री नौबिता का विवाह इसके साथ ही कर दिया जायें। हाँ!!! नौबिता!!! अभी बारह साल की लड़की!! उसे गुड्डे गुड़ियाँ खेलने से ज्यादा मजा तो जंगल से बैर तोड़ने, तालाब के पानी में तैरने या गिलहरियों के पीछे पीछे दौड़ने में आता था, पूरे दिन जंगल की खाक छानती रहती थी, पेड़ पर चढ़ना तो उसके लिये जैसे बायें हाथ का काम था,बंदर से ज्यादा फुर्तीली!!
हाँ!!! तो वैद्यराज ने एक दिन जयदीप को अपना प्रस्ताव सुना दिया।। जयदीप ने पहले तो सोचा और फिर कहा कि इससे बढ़िया बात तो कुछ हो ही नहीं सकती। हमारी दोस्ती रिश्ते में बदल जायें यह तो अहोभाग्य होगा मेरा। अब बात बच्चों को समझाने की थी क्योंकि उस कबिलाई जमाने में शादी ब्याह का मामला वर्तमान समाज के जैसा था बच्चों की पसंद के बगैर शादी नहीं की जाती थी तो तय हुआ कि दोनों को साथ साथ खेलने का मौका दिया जायें!!
और दुसरे दिन नौबिता भी दरबार में थी, दोनों को कहाँ गया कि आप लोग शाही बगीचे में खेलने जा सकते है। दोनों ने एक दुसरे को खा जाने वाली नजरों से देखा और फिर चल दिये। वहाँ जाकर खुद में व्यस्त हो गये। एक दुसरे पर बिल्कुल ध्यान न देते थे। दुसरे दिन भी वापस वहीं। फिर एक दिन नौबिता के सामने एक काला सर्प आ गया। और उस समय उसके पास कुछ नहीं था। वो निडर तो थी मगर निहत्थे क्या करती। जोर से चिल्लाई।। धनुष दौड़ कर आया तो देखा कि फन किये बिल्कुल सामने बैठा है नाग तो नौबिता के। धनुष ने बिना ज्यादा सोचें दूर से ही लकड़ी को हवा में लहराकर उस तरफ फेंक दी। एक सधा हुआ निशाना और तीव्र गति का। सर्प एक ही पल में दूर जाकर झाड़ियों में जा गिरा। और नौबिता के आश्चर्य का ठिकाना न रहा। उसने धनुष को धन्यवाद कहा और चलती बनी
पर अब वो थोड़ी बदल गई थी, अब वो रोज धनुष के साथ ही खेलती और पुरे दिन उसके साथ ही रहती।
हाँ... पर अब भी वो कम ही बोलती! न जानें क्या? उसके मन में क्या चलता था! क्या सोचती थी पता नहीं।। अक्सर धनुष उससे किसी न किसी बहाने से बात करने की कोशिश करता पर वो बात को बदल देती और उल्टा धनुष उसकी उल्टी सीधी बातों में ही ऊलझ कर रह जाता।। क्योंकि इतना साथ खेलने से और साथ रहने से धनुष को शायद नौबिता के प्रति लगाव हो गया था पर नौबिता के द्वारा ज्यादा बातचीत न करने से वो अपने मन की बात नहीं कह पाता। पर वो मौका ढुँढ रहा था कि कभी तो उसकी बात सुनेगी।।
और फिर इधर सरदार के पुत्र के जन्मदिवस पर एक शानदार कार्यक्रम रखा गया, जिसमें धनुष ने बहुत ही अच्छा नृत्य प्रस्तुत किया उसका नृत्य देखकर नौबिता तो जैसे बिल्कुल हतप्रभ रह गई। उस समय उसने सिर्फ यहीं कहाँ, "गज्जब"....
अगले दिन जब वापस बाग में धनुष पहुँचा तो नौबिता वहाँ पहले से बैठी थी, धनुष ने जाकर पुछा क्या हुआ?
नौबिता बोली, "अरे!! मैं तुम्हारा इंतजार ही कर रही थी, तुम इतनी देर से आयें!! क्यों?
धनुष थोड़ी देर तो नौबिता को ही देखता रहा कि आज सूरज पश्चिम में कैसे ऊग गया? पर अगले ही पल संभलकर बोला आज बाबा को कुछ काम था घर पे थोड़े लेट हो गये।।
"ओहो!! मैं कब से यहाँ बैचेन हुँ तुम्हारे लिये!!"
"बैचेन!! क्युँ क्या हुआ?"
"तुम ना बुद्धु ही रहोगे!! लड़कों का दिमाग कहाँ चलता है, चलो बाद में बताऊँगी"
"बुद्धु"!!! धनुष जानबुझकर बोला और फिर कहने लगी, " चलो खेलते है"
"नहीं!! आज तुम मुझे नृत्य सीखाओगे?" नौबिता ने खड़े होकर कहा।
"नृत्य!!!!! और यहाँ!! कैसे भला।। न साज बाज है न गायक!!"
"वो गाने का काम मैं कर लुँगी, बिन साज बाज के ही केवल भाव भंगिमा ही सीखा दो, कदमताल में घर पे सीखुँगी।" नौबिता ने कहा।
"ओहो!! ठीक है फिर!! कोशिश करते है"
....... नौबिता ने जैसे ही गाना शुरू किया तो धनुष नाचने की बजाय उसे देखने लगा।
इतनी मधुर आवाज में गाना उसने कभी नहीं सुना था। इसलिये धनुष तो उसे ही देखे जा रहा था। नौबिता ने जब देखा कि धनुष नहीं नाच रहा तो नहीं भी रूक गई और बोली तुम नाच नहीं रहे हो?
धनुष थोड़ा मुस्कुराया और बोला चलो अब अब नाचेंगे। नौबिता फिर गाने लगी तो धनुष इस बार नाचने लगा। नौबिता ने जब नृत्य देखने लगी तो गाने में उसे और भी मजा आने लगा। इस तरह दोनों अब ऐसे गाने बाने में समय बिताते। और दोनों के बीच नजदीकियाँ बढ़ने लगी। पर कभी एक दुसरे को कुछ न बोलें। दोनों के मन में जानें क्या शंका थी।
और फिर धनुष को तो दरबार में ही प्रहरी बना दिया गया। अब उसके खेलने कूदने के दिन नहीं थे, रोज सुबह से शाम तक दरबार में उपस्थित रहता। इधर नौबिता भी घर के का में व्यस्त रहने लगी।
और वक्त युहीं गुजरता गया। और दोनों की उम्र विवाह लायक हो गई।
एक दिन फिर नौबिता के घर पर उसके दादाजी ने चर्चा की कि नौबिता ब्याह लायक हो गई है अब उसका ब्याह कर देना चाहिये। जब दूर खड़ी नौबिता ने सुना तो चेहरा उतर गया, जाने कहाँ ब्याह होगा, धनुष से दूर कैसे रहेगी, घरवालों के कैसे कहुँ कि धनुष से शादी करनी है(लाज आ रही थी), इसलिये वो बैचेन हो गई। पर फिर भी वो चुपचाप सुनने लगी।। दादाजी ने आगे बताया कि प्रधानमंत्री जी का बेटा है इसके लायक है और दोनों एक दुसरे को जानते भी है, इसलिये अगर नौबिता हाँ कर दें तो बस पक्का कर दें।
नौबिता ने जब सुना तो उसका चेहरा लाज से बिल्कुल गुलाबी हो गया, और मारे खुशी के आँसु आ गये। उसे अचानक कुछ न सुझा और दूर से ही चिल्ला पड़ी, "हाँ"
और सुनते ही घर में हँसीं का फँवारा छूट पड़ा। हँसी सुनकर नौबिता को और ज्यादा लज्जा आ गई और वो वहाँ से भाग गई।
और फिर रस्मों रिवाजों के साथ ही नौबिता धूमधाम के साथ विदा हुई अपने ससुराल के लिये। ब्याह में सरदार द्वारा भोज की व्यवस्था की गई थी क्योंकि वैद्यराज दरबार के सबसे वरिष्ठ और हितैषी थे।
अपने नये घर(ससुराल) में आई तो नौबिता को जरा सी असहजता महसूस हुई। क्योंकि स्वच्छंद रहने वाली लड़की घर के बंधनों में बंद गई। धनुष तो पूरे दिन दरबार में रहता, घर पे शाम को लौटता। अब भी नौबिता और धनुष एक दुसरे को मन की बात न कह पायें थे। काफी दिनों तक युहीं चलता रहा।
फिर एक दिन शाम को धनुष ने जब नौबिता को अकेले देखा तो पास जाकर धीरे से कहा, " क्या हुआ!! तुम इस शादी से खुश नहीं हो क्या?"
"खुश!! खुश ही तो हुँ!! वो तो दिनभर काम से थक जाती हुँ तो तुम्हें ऐसा लगता होगा। खैर छोड़ो!! तुम थक गये हो सो जाओ!!"
और धनुष के पास अब कोई जवाब नहीं बन रहा था.... सो गया।
अब धनुष भी उदास हो गया कि क्या करें। एक दिन उसने देखा कि राजकुमार के लिये अनेक तौहफे लायें गये है जो अच्छे से सजा रखे है। इससे धनुष के दिमाग में भी विचार आया क्यों न नौबिता को सरप्राइज दिया जायें। उसने फिर शाम को घर आते वक्त बाजार से लाख के दो सुंदर कंगन खरीदें और जेब में रख लिये। हमेशा की तरह घर आकर खाना खाकर सो गया(नींद नहीं थी, बस नाटक).....
सब कामकाज निपटाकर जब नौबिता उसके पास आकर सो गई और आँखें बंद की तब धनुष ने जेब से कंगन निकालें और नौबिता के का में के पास खनकाया...
नौबिता चौंक गई। आँखें खोली पर कुछ न दिखा। कुछ सोचकर फिर सो गई। फिर से उसके कानों में वहीं आवाज आई। फिर आँखें खोली तो आँखों के सामने कंगन थे जो धनुष के हाथों में बिल रहे थे। नौबिता ऊठबैठी। और हाथ से छीनकर बोली," ये मेरे लिये है!!!! तुम लायें हो?"
"हाँ, हाँ!! तुम्हारे लिये है!! पहनो तो सही"
नौबिता ने वापस धनुष को देकर कहाँ, "नहीं!!! तुम्हीं पहनाओगे तो पहनुँगी, वरना नहीं।"
और फिर धनुष ने पहली बार नौबिता के हाथ को प्रेमपुर्वक पकड़ा और कंगन पहनायें। उस समय नौबिता की खुशी का कोई ठिकाना न रहा। और उसने धनुष को गले लगाकर कहा कि तुम कितने अच्छे हो।
और फिर तो उनकी प्रेम की गाड़ी पटरी पर दौड़ने लगी.....
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हाँ!!!! तो यह थी एक कथा जो मैनें बहुत सालों बाद पुन: पढ़ी थी कल। और तुम्हें सुना रहा हुँ।।देखो तुम सोचकर देखो कि कैसे उन दोनों के बीच प्रेम के बीज पैदा हुए। कभी तुम भी अपने मन यह उत्पन्न करके देखो!! अपने दिल में फिर वो दिन याद करके तो देखो।। मुझे मालुम है तुम भी अपने घर की सफाई में व्यस्त हो, मगर काम के बाद भी समय तो रहता ही है। खैर!! तुम्हारी मरजी?? बाकी हम तो युहीं तंग किया करेंगे, अपने खतों के जरिये।
हाँ!! हल्की हल्की तुम्हारे गालों सी गुलाबी ठंड शुरू हो गई है, अपना ख्याल रखना और खता का जवाब जल्दी देना.....
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With lots of love..
Yours
MUSIC
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©® जाँगीड़ करन kk
26/10/2016_5:00AM
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