DEaR SwAr,
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नीम तले यह गहरी छाँव,
याद आ रहा तेरा गांव.......
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सीढ़ियों से उतरते चाँद को,
नज़रों से देखूं कि दिल से।
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यूं बार बार अपनी जुल्फों को छेड़ा न कर,
हम घायल तेरी नज़रों और कोई जुल्म न कर।
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सुनो स्वर,
सबसे पहले तो दीपावली के त्यौहार की अग्रिम शुभकामनाएं......
हां, तुम कहो न कहो पर मुझे पता है कि तुम आजकल बहुत बिजी रहती होगी, दीपावली की साफ सफाई, कॉलेज, स्कूल भी जाना.....
हां, तुम हमेशा की तरह ही मेरा यह खत भी नहीं पढ़ने वाली हो... जैसे ही तुम्हें खत मिला और तुम इसे तोड़ मरोड़ कर कचरे में डाल देने वाली हो... मगर, मैं तो तुम्हें लिखूंगा... मेरा तो यह जरूरी काम बन गया है ना जैसे कि श्वास लेना जरूरी है..
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हां तो सुनो,
मैं अभी बैठा था एक नीम के पेड़ की छांव में.....
अचानक से एक पता उपर से टूटकर कर चेहरे पर आकर गिरा, अब तुम सोचोगी कि यह तो कोई नई बात नहीं हुई क्योंकि पत्ते है तो उनको टूट कर गिरना ही है।
मगर,
मैं उस पत्ते को हाथ में लेकर कहीं दूर तुम्हारे ख्यालों के गांव में खो गया...
मुलाकातोंं के उस दौर में जहां चांद सीढ़ियों से उतरता था, जहां बादल सिर्फ नीम की छांव तले बिखरते थे, जहां बारिश ने गर्मी की तपती दुपहरी में भी सुकुन दिया था मुझको, जहां खुशबू मतलब कि बस......
कुछ तुम्हें भी याद आया होगा....
सीढ़ियां हां,
गिनती मुझे याद है अब भी उनकी पांच ही है ना शायद, हाथ में चाय के कप की ट्रे, पांच सीढ़ियां पांच मिनट.... क्या फुतीं थी ना...
अरे!! यह वाली चाय आपके लिए नहीं, फीकी थी ना... हां, एक कप और लाऊं?
मैं इस ड्रेस में कैसी लग रही हूं?
वो ड्रैस अच्छी थी कि यह?
अब का बताता कि ड्रेस तुम्हारे लिए है तो फिर?.......
खैर,
नीम!!!!!
हां!!! तुम अक्सर मुझे तुम्हारे आंगन वाले उस नीम के पेड़ के आसपास नजर आती थी ना,
कभी अपनी बहिन संग झूला झुलते,
कभी पकड़म पकड़ाई,
कभी उसी छांव तले होमवर्क में बिजी!!
तुम्हें याद है ना.....
एक बार तो मैं आया था अंदर तो तुम्हें इसका ध्यान ही नहीं था और झुला इतनी जोर से दरवाज़े की तरफ आया कि तुम्हारा दुपट्टा सीधे मेरे मुंह पर आया और वही उलझ कर रह गया...
और.....
आगे मैं क्या कहूं....
वक्त की सीनाज़ोरी न हो फिर से तुम्हें...........
दुपट्टा अपने हाथ से ओढ़ाना(मैं दुपट्टे में ओढ़नी देखता हूं जान) चाहता हूं, वैसे ही झूला झूलते हुए, वैसे ही झूले की रस्सी को पकड़कर, वैसे ही झूले की लकड़ी पर खड़े होकर......
मैं उस वक्त पता नहीं क्या सोचता रहा होगा, दुपट्टा ओढ़ाऊं कि बिखेरती जुल्फ़ों से खुशबू चुराऊं,
बादलों को कोई संदेश सुनाऊं या खुद को बारिश की तरह भिगो दूं....
तुम तो तब भी हैरान थी,
अब भी हो....
खैर,
तुमने उस दिन पता है ना नीम के पत्तों पर मेरा नाम लिखा था ओर मुझसे पूछा था कि कौन-सा सबसे अच्छा है।
अरे!! तुम्हें क्या बताता मैं कि तुम्हारा लिखा मेरा नाम अपने आप में लाजवाब है।
और........
देखो ना,
इस पत्ते ने मेरे चेहरे पर गिर कर मुझे फिर से वही पल याद दिलायें है,
मैंने उस पत्ते को गौर से देखा था कहीं तुमने तो नाम लिखकर नहीं भेजा पर वहां कोई नाम नहीं था
मैंने नीम नीचे गिरे हरेक पत्ते को हाथ में लेकर देखा पर किसी पत्ते पर नाम नहीं था... मैं भी कितना पागल हूं ना यह नीम का पेड़ अलग है वो तो तुम्हारे आंगन में है!!
और फिर.....
फिर मैं वहीं बैठ कर तुम्हें लिख रहा हूं कि...
अब मैं तुम्हें आने की नहीं कह रहा हूं दिल में जिस दिन लगे स्वागत है तुम्हारा!! दरवाजे अंतिम श्वास तक भी तुम्हारे लिए खुले रहेंगे।.....
हां,
मगर मैं आ रहा हूं फिर से,
बस झूला तैयार रखना,
दुपट्टा वहीं रखना....
सुन रहे हो ना......
.......
दीपोत्सव की ढेर सारी शुभकामनाओं और एक लवली बाइट के साथ
Yours
Music
©® जांगिड़ करन KK
18_10_2017___7:00AM
Some photographs are borrowed from Google with due thanks
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