कितने
क़रीने से
सजाता हूं मैं,
नरम मिट्टी से
सपने.....
एक कौने में
खुशबू,
दुसरे में
समर्पण,
तीसरा कौना
चाहत का,
चौथे में
जिंदगी......
बस इंतजार
किया था
प्रेम की
बूंदों का,
सपनों को
जमाने खातिर
मोहब्बत की
थपथपाहट का....
पर
वक्त जानें क्यों
अंधड़
लें आया
नफ़रत की
और
बिखेर गया
सपनों को,
ध्वस्त किया
अरमानों के
घरोदें को.....
मैं अवाक्
बस देखता रहा,
भावशून्य बन.....
मगर आंखों में
फिर से
वहीं
सपने
सजने लगे थे....
मालूम है मुझे
यही जिंदगी है!
......
©® Karan DC KK
07_10_2017__14:00PM
और मैं, मेरी चिंता न कर मैं तो कर्ण हुँ हारकर भी अमर होना जानता हुँ
Saturday, 7 October 2017
Alone boy 25
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Alone boy 31
मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...
-
मुझे युँ आजमाने की कोशिश न कर। अंधेरा बताने की कोशिश न कर।। झर्रे झर्रे से दर्द ही रिसता है यहाँ, मेरे दिल को छलने की कोशिश न क...
-
महसूस जो कर लें मुझको तुमने धड़कन देखी है, जिसकी धुन को कान सुन रहे ऐसी करधन देखी है। और जमाने के रिश्तों की बात नहीं मालूम मुझे, जमी...
-
हाँ!! मैं अब भी मेरी छत पर बैठा उस खिड़की को निहार रहा हुँ, कि शायद किस पल तुम उससे झाँकने का इरादा कर लो! वैसे देखो ऊपर आसमाँ में चाँद भी अ...
No comments:
Post a Comment