Monday, 1 January 2018

नया साल मुबारक हो 2

बदलना जब कुछ भी नहीं
किसका जश्न मनाऊं मैं......
.....
क्या मौसम में
तुमने करवट देखी है,
पिछली सर्द रातों की
कोई फितरत देखी है?
धुआं अब भी चारों ओर
कैसे उसको देख पाऊं मैं.....
बदलना जब..................
.........
रिश्तों के झंझावात में
उलझन क्या कम हो जायेगी?
बात बात पर या यूंही
मां की हंसी उड़ाई जायेगी?
बेटे की नजरों में कैसे
वो सम्मान देख पाऊं मैं......
बदलना जब....................
...........
क्या छलते मासूम चेहरे में
बदलने की हिम्मत आयेगी?
या राह चलती बालायें
युहीं छेड़ी जायेगी?
दिल के किसी कोने में क्या
भाई सा स्नेह पाऊं मैं.....
बदलना जब..............
...........
बदलना था जो वो बदल गया
अपने वादों से ही मुकर गया,
मन की पीड़ा समझें बिना,
परदेशी वो निकल गया!!
जज़्बातों की आंधी में
खुद को कैसे टिका पाऊं मैं.....
बदलना जब..................
...........
खुशियों की फिर भी तुम्हारी
दिल से यह दुआ रहेगी,
मेरा क्या है मेरे तो
दिल में तेरी याद रहेगी।
एक करन में बेसुरा सा
स्वर को मनाऊं मैं?
बदलना जब...............

©® जांगिड़ करन KK
01__01__2018____9:00AM

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