Sunday, 28 January 2018

जिंदगी तुम से है

जिंदगी.....
बिलखते बच्चे को
सीने से लिपटाकर
चुप कराती
मां
के फटे आंचल की
दास्तां............
.............
जिंदगी.....
बच्चे को
कंधे पर
बिठाकर कर
घुमाते
पिता के
पैरों की थकान....
.............
जिंदगी......
फिसलते
भाई की खातिर
जोखिम उठाते
इक अपंग
की जान......
..........
जिंदगी......
दरकते
रिश्तों को
घावों से
रोकने का
सिसकता सा
मान.........
......
जिंदगी....
बगैर तेरे
भटकता राही
जैसे
मरूथल के
दरमियान.....
.......
जिंदगी......
जो समझा नहीं
कोई
करन के
कुछ लफ़्ज़ों
में
बहकता सा
इमान.....
.......
©® जांगिड़ करन kk
28_01_2018____18:00PM

2 comments:

  1. निः शब्द....🙏

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  2. वाह
    बहुत खूब
    हर पंक्ति में जिंदगी का सार

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