जब जिंदगी छीलने लगे
खुद ही
खुद के घावों को....
अक्सर ऐसी
रातों में
गीत कोई निकलता है।......
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बर्फीली जो
चलें हवाएं
धुंध गहरी सी
जब छाएं......
ऐसे ठंडे
मौसम में भी
फूल कोई खिलता है।........
...............
तपती दोपहरी
तन पे बोझा
लंबी दूरी
यौवन खोजा.........
ऐसे जीवन
का भी अपना
रूप कोई निखरता है।.........
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जा दूर गिरी
पतंगा वो जो
अभिमानी सी
लहराई थी.......
अल्फाजों के पेंच
में उलझा
कदम कोई
फिसलता है..........
................
मैं तो करन बस
आवारा
जानें किसकी
राह चलूं?
जब भी मंजिल
दिखती है
वक्त ये
राहें बदलता है.........
©® जांगिड़ करन KK
10__01__2018____20:00PM
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