Tuesday, 29 September 2015

गीत वेदना का

अंतस की वेदना का गीत लिखने चला हुँ आज|
हुँ खुश मैं या उदास यह बताने चला हुँ आज||

कहीं से वक्त दी थी मुझे आवाज,
करूँ मैं भी मधुर रिश्तों का आगाज|
बढ़ाया था कदम मैनें भी खुशी खुशी उस ओर,
होगा क्या इसका जरा भी नहीं था अंदाज||
उन रिश्तों की मधुरता दिखाने चला हुँ आज....
हुँ खुश या.....................................

जिंदगी की राह पर मैं चल रहा था,
रंगीनियों से दूर हमेशा ही रहा था|
इक मोड़ पर सुनी मधुर सी आवाज,
लगा कि कोई मुझे दिल से पुकार रहा था||
उस आवाज की कशिश में खो चला हुँ आज...
हुँ खश या.......................................

कहीं पे किसी को सँवरते हुए छोड़ आया हुँ मैं,
किसी आँख में एक कतरा पानी छोड़ आया हुँ मैं|
वो चाँद आसमाँ का युहीं गुरूर करता है खुद पे,
मालूम उसे नहीं कि झील में इक चाँद छोड़ आया हुँ मैं||
तन्हाई मैं उस चाँद को ही याद करता हुँ आज..
हुँ खुश या........................................

©® करन जाँगीड़

Sunday, 27 September 2015

गिले शिकवे

मिलकर के तुमसे ही मेरे अरमान मचलते है,
देख के जुल्फें तेरी जज्बात ये बहकते है|

मिलने न दिया कभी जहाँ ने हमको,
देख के संग हमको सब यहाँ जलते है|

न जाने कैसा जादु है तेरी आँखों में,
देखकर इनके दिल में तुफान से चलते है|

थामा है तुमने हाथ अपने हाथ मेरा,
वरना युहीं कहाँ ये दिल मिलते है|

तन्हाई की रात आहों में कटती है करन,
बस गिले शिकवे ही अब तो दिल में रहते है|

©® करन जांगीड़

मेरे ख्वाब

ये कैसे ख्वाब

हम दोनों हो साथ,
ट्रेन के सफर में,
मैं खो जाऊँ,
तुझमें इतना कि
जंजीर खींच दुँ,
जुल्फें तुम्हारी समझकर

तब तुम चिल्लाओ
अबे ट्रेन में
पहली बार
बैठ रहो हो
क्या?

हम दोनों साथ में हो,
बाइक पर,
मैं खो जाऊँ तुझमें इतना
कि बाइक की
रेस को
समझ बैठुँ
कान तेरे,
और उमेठने के चक्कर में
रेस बढ़ा दुँ,

फिर तुम चिल्लाओ
अबे!! खड्डे देखकर
तो चला.

हम दोनों लैटे हो
अपने खेत की मेड़ पर
मैं तुझमें खोया हुआ रहुँ,
आ जाय्ं कहीं से साँप
और मैं समझकर तुम्हारा हाथ
झट से पकड़ कर रख दुँ
सीने पर अपने,
तब तुम चिल्लाओ
अबे!! वो साँप है
खा जायेगा.

हम दोनों सर्दी की
चाँदनी रात मे,
बैठे हो छत पर
मैं तुझे देखुँ,
फिर चाँ द को देखुँ,
चाँद में तुम्हारा अक्स देखुँ,
इतना खोके देखुँ
कि तुम ऊठकर चली
भी जाओ तो भी
चाँद में तुझे देखकर देखता ही रहुँ
फिर थोड़ी देर बाद
आकर
तुम चिल्लाओ,
अबे!! ठंड लग जायेगी,
सोना नहीं है क्या?

रोज सुबह तुम्हारे हाथ की,
गर्म चाय बिस्तर में ही,
उसी चाय की धुंध में
ख्वाबों की तस्वीर बनाऊँ,
धुँध में जो देखता रहुँ तुमको,
चाय को भी भूल जाऊँ,
फिर तुम चिल्लाओ
अबे मास्टर!!
स्कूल नहीं जाना है क्या?

ख्वाब है ये मेरे,
ख्वाब ऐसा भी कि कब
ये ख्वाब पूरे हो,
तुम सुनाओ मुझे,
खनक चुड़ियों कि
मैं इस खनक में ही खोया रहुँ..
ख्वाब हाँ
मेरे ख्वाब

©® करन_kk

Tuesday, 22 September 2015

कर्ण की व्यथा

देखो फिर से किसी ने खाई है ठोकर यहाँ,
भीड़ तमाशबीनों की देखो आ गई है यहाँ|

अपनों ने ही जब निकाल दिया हो घर से,
तो किस दर पे जायें अब लावारिस यहाँ|

एक टीस सी उठती है हर वक्त ही दिल में,
कब इस दिल की पीर को सुनता है जहाँ|

हर इक ख्वाब ने दम तोड़ दिया है अब,
दिल भी भरा गम से इन्हें दफनाऊँ कहाँ|

इक तेरा ही आसरा है स्वर मुझे अब,
गीत कोई मीठा सा  गुनगुनाओ राह में यहाँ|

पीना पड़ता है अपमान का घूँट हर वक्त ही,
युहीं कोई कर्ण नहीं बन जाता यहाँ||

©® जाँगीड़ करन DC

Wednesday, 2 September 2015

आह चाय

हर रोज सुबह
जब होता है हाथ में
कप चाय का,
आ जाता है
संदेश तुम्हारा
निमंत्रण होता है उसमें
चाय का,
जानती हो उस वक्त
खो जाता हुँ कहीं
तेरी यादों में
जैसे पी रहे हो चाय
हम दोनों एक साथ
एक ही कप से
बैठकर किसी एकांत में.
फिर अचानक
आ जाता हुँ वापस
वर्तमान में,
अरे चाय तो ठंडी हो गई है,
पर जब भरता हुँ
घूँट एक
अहसास होता है,
तेरी उपस्थिति का,
चाय लगती है
पहले से ज्यादा मीठी
कहीं तुम्हारें होठों ने
छुआ तो नहीं चाय को.
© ® karan dc

Tuesday, 1 September 2015

अमानत

वतन पे कहीं तो शहादत लिखी है,
सदा जिंदगी की सलामत लिखी है|

बना जो खिलाड़ी अभी से फ़रेबी,
उसे मालुम कहां शराफत लिखी है|

अहम को जलाने अमीर परस्ती के,
कहीं दीन ने अब बगावत लिखी है|

छिपाता रहा है हमेशा मुख वहीं,
युँ जिसके मुखोटे बनावट लिखी है|

सही में हुई ना 'करन' की कभी वो,
यहां याद की ही अमानत लिखी है|
©® Karan dc

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...