अंतस की वेदना का गीत लिखने चला हुँ आज|
हुँ खुश मैं या उदास यह बताने चला हुँ आज||
कहीं से वक्त दी थी मुझे आवाज,
करूँ मैं भी मधुर रिश्तों का आगाज|
बढ़ाया था कदम मैनें भी खुशी खुशी उस ओर,
होगा क्या इसका जरा भी नहीं था अंदाज||
उन रिश्तों की मधुरता दिखाने चला हुँ आज....
हुँ खुश या.....................................
जिंदगी की राह पर मैं चल रहा था,
रंगीनियों से दूर हमेशा ही रहा था|
इक मोड़ पर सुनी मधुर सी आवाज,
लगा कि कोई मुझे दिल से पुकार रहा था||
उस आवाज की कशिश में खो चला हुँ आज...
हुँ खश या.......................................
कहीं पे किसी को सँवरते हुए छोड़ आया हुँ मैं,
किसी आँख में एक कतरा पानी छोड़ आया हुँ मैं|
वो चाँद आसमाँ का युहीं गुरूर करता है खुद पे,
मालूम उसे नहीं कि झील में इक चाँद छोड़ आया हुँ मैं||
तन्हाई मैं उस चाँद को ही याद करता हुँ आज..
हुँ खुश या........................................
©® करन जाँगीड़
No comments:
Post a Comment