वतन पे कहीं तो शहादत लिखी है,
सदा जिंदगी की सलामत लिखी है|
बना जो खिलाड़ी अभी से फ़रेबी,
उसे मालुम कहां शराफत लिखी है|
अहम को जलाने अमीर परस्ती के,
कहीं दीन ने अब बगावत लिखी है|
छिपाता रहा है हमेशा मुख वहीं,
युँ जिसके मुखोटे बनावट लिखी है|
सही में हुई ना 'करन' की कभी वो,
यहां याद की ही अमानत लिखी है|
©® Karan dc
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