Wednesday, 2 September 2015

आह चाय

हर रोज सुबह
जब होता है हाथ में
कप चाय का,
आ जाता है
संदेश तुम्हारा
निमंत्रण होता है उसमें
चाय का,
जानती हो उस वक्त
खो जाता हुँ कहीं
तेरी यादों में
जैसे पी रहे हो चाय
हम दोनों एक साथ
एक ही कप से
बैठकर किसी एकांत में.
फिर अचानक
आ जाता हुँ वापस
वर्तमान में,
अरे चाय तो ठंडी हो गई है,
पर जब भरता हुँ
घूँट एक
अहसास होता है,
तेरी उपस्थिति का,
चाय लगती है
पहले से ज्यादा मीठी
कहीं तुम्हारें होठों ने
छुआ तो नहीं चाय को.
© ® karan dc

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