देखो फिर से किसी ने खाई है ठोकर यहाँ,
भीड़ तमाशबीनों की देखो आ गई है यहाँ|
अपनों ने ही जब निकाल दिया हो घर से,
तो किस दर पे जायें अब लावारिस यहाँ|
एक टीस सी उठती है हर वक्त ही दिल में,
कब इस दिल की पीर को सुनता है जहाँ|
हर इक ख्वाब ने दम तोड़ दिया है अब,
दिल भी भरा गम से इन्हें दफनाऊँ कहाँ|
इक तेरा ही आसरा है स्वर मुझे अब,
गीत कोई मीठा सा गुनगुनाओ राह में यहाँ|
पीना पड़ता है अपमान का घूँट हर वक्त ही,
युहीं कोई कर्ण नहीं बन जाता यहाँ||
©® जाँगीड़ करन DC
No comments:
Post a Comment