Friday, 7 July 2017

A letter to swar by music 30

Dear SWAR,
............
आसमां को ताकता हूं कि कहीं बादल तो नजर आयें,
आंखों के बादल मगर है कुछ देखने भी ना दें मुझको।
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देखो तो यहां,
मेरे गांव के लोग बादलों का इंतजार कर रहे हैं और बादल है कि बस एक मामूली सी झलक दिखला कर जानें कहां गुम हो गए हैं, किसानों के चेहरे की उदासी मैं खूब समझता हूं पर ये बादल भी तो अपने बस में नहीं है ना,
सबके अपने अपने नसीब है कोई किसका इंतज़ार करता है, कोई किसका?
और जानता कोई नहीं कि इंतजार कब खत्म होना है या होना भी है या नहीं!!
मगर करें भी क्या जब सबने अपने अपने हिस्से की किस्मत में यहीं लिखा!
और यही करना भी है...
.......
देखो,
आज फिर मैं वहीं पर जा बैठा है जहां पर बैठ कर अक्सर मैं तुमसे जिंदगी की बातें किया करता था,
मालूम है ना,
जैसा मेरी जिंदगी में रूखा रूखा है वैसा ही यहां पर भी रूखा रूखा है......
मैं आज यहां काफी समय बाद आया हूं,
मुझे मालूम है कि बिन बारिश यहां का हाल यही होना है, मगर बहुत उदास हो गया हूं आज यहां आकर....
एक इस जगह की ऐसी नीरसता और दूसरे उन लम्हों की कमी जिनमें हमने सपने बुनकर जिंदगी की नींव रखी थी.....
तुम्हें याद है ना मैं तुम्हें बताता था.....
जब मैं उस पत्थर पर बैठकर तुमसे खूब बतियाता था और उस वक्त पत्थर के चारों ओर पानी भरा हुआ था...
एक तरफ पानी से होकर आती ठंडी बयार और दुसरे तेरी आवाज़ दिलकश जादू पता नहीं चलता था कि कब वक़्त भागता जा रहा है और शाम का खाना अक्सर ठंडा हो जाता था,
मालूम है ना घरवाले दो बात सुनाते इस पर, मगर मैं!! हा हा हा हा हा ,
कान भी नहीं देता क्योंकि उस समय तक भी कानों में तो तुम्हारी ही आवाज गूंजती रहती थी इसलिए घरवालों डाँट का मुझ पर कोई असर नहीं पड़ता था,
मैं तो चुपचाप खाना खाने में मग्न हो जाता और खाना ठंडा होने के बावजूद भी एकदम फ्रेश और स्वादिष्ट लगता, तेरी आवाज़ उसके स्वाद में चार चांद लगा देती थी,
सुनो,
देर तो मुझे आज भी होने वाली है, डाँट भी पड़ने वाली है मगर खाने में वो पहले सा स्वाद नहीं आने वाला......
तुम्हें मालूम है ना!!!
मैं तुम्हें अक्सर वहां बैठकर पास पेड़ से आ रही पंछियों की आवाज सुनाता था, तुम मुझे बस पागल कहती और कहती कि मेरी ही आवाज मुझे सुना रहे हो (इस पत्र को पढ़ने वालों में कोई शख्स ऐसा भी होगा जो इस पंक्ति का सीधा सीधा मतलब समझ जायेगा)......
मगर,
मगर आज देखो मैं यहां बैठा हूं, कानों में आज भी ईयरफोन लगा रखे हैं मगर एक आवाज आ रही अभी इनसे होंठों से छूलो तुम मेरा गीत अमर कर दो.....
और सुनो,
इस चट्टान के आसपास तो क्या इस पुरी नदी में कहीं भी पानी नजर नहीं आ रहा है। मेरी निगाहें चारों ओर बस पानी ढूंढ रही है मगर कहीं नजर नहीं आया और आसपास के पेड़ पौधे भी रूखे सूखे हैं, वहां से भी तेरी आवाज़ अब नहीं आती है........
........
कि वक्त ही मुकर्रर करता है जिंदगी की किताब को,
मैंने तो हर पन्ने पर तेरे ख़्वाबों की बारिश ही चाही थी।
........
आसमां से बरसता ही नहीं पानी,
और  आंखों  से थमता  ही नहीं।
निगाहें जाने क्यों तरसती है करन,
जब उनको इस राह पर आना ही नहीं।
..........
सुनो,
तो फिर,
मैं यहां अब बैठा,
गीली आंखों में तस्वीर अब भी एक ही बनती है यहां तुम कभी आकर अपनी जुल्फों से बारिश कर रहे हो,
और मैं,
मैं तो............

With love
Yours
Music

©® जांगिड़ करन kk
07_07_2017__19:00PM

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