हर तरफ बस बीमार निकलें,
मोहब्बत में ज़ार ज़ार निकलें।
तोहमत मुझ पर जो लगा रहे,
वहीं आज फिर दागदार निकलें।
टूटी नैया तो है घायल खिवैया,
समंदर से कैसे आर पार निकलें।
जिनकी नज़रों से दिल घायल है,
उनके दिल से अब अंगार निकलें।
औकात अपनी कहां हुस्न के आगे,
नज़रें ठहर जायें जो वो बाज़ार निकलें।
जिंदगी का नश्तर चलता रहा करन,
निभायेगा कौन रिश्ते तो हजार निकलें।
©® Jangir Karan kk
29_07_2017
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