Wednesday, 14 December 2016

लिख रहा हुँ

मैं उस दर पे बंदगी लिख रहा हुँ,
छोड़ भरम सारे सादगी लिख रहा हुँ।

जहाँ रास्ते बदल जाते है सफर में,
मोड़ की मैं बदनसीबी लिख रहा हुँ।

जुगनुँ की रोशनाई से परे है जो,
चाँद की वो चाँदनी लिख रहा हुँ।

रिश्तों की अहमियत कब समझोगे,
दिल की मैं तिशनगी लिख रहा हुँ।

हर  हर्फ की अपनी  ही कहानी है,
मैं एक शेर में जिंदगी लिख रहा हुँ।

एक स्वर पर न्यौछावर है करन तो,
मैं  गीत  से  दीवानगी लिख रहा हुँ।।
©® जाँगीड़ करन kk
14_12_2016___07:20morning

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