Saturday, 3 December 2016

मदहोश दिल

तेरी जुल्फों से खेलों कि खुद पे बारिश कर दुँ,
तेरे दामन में सो जाऊँ खुद को गुलाब कर दुँ।

तेरे होठों के प्याले से जब जाम छलकता हो,
मैं क्यों खुद की राह मयखाने की ओर कर दुँ।

तेरे चेहरे की ही रंगत है या चाँद की परछाई है,
मैं इसे निहारते हुए न्यौछावर सारी रात कर दुँ।

गुलाब खुद तुमसे अपना नूर माँगने आता है जब,
मैं अपनी नजरों का रूख कहीं और कैसे कर दुँ।

जो तुम अपनी पायल का स्वर सुना दो मुझको,
मैं खो के धुन इसकी खुद को मदहोश कर दुँ।।
©® जाँगीड़ करन kk
03/12/2016__20:00pm

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