मोहब्बत के दिन याद आने लगे है।
वो फिर से सज सँवर जाने लगे है।।
जब से कदम रखा है उन्होनें बाग में,
पतझड़ में भी फूल खिल जाने लगे है।
जब जिंदगी की तप रही ऊलझनों में,
अपनी जुल्फों से घटा बरसाने लगे है।
कैसे रोकुँ हुस्न से खुद को बचाने,
हर रोज मुझे अब आजमाने लगे है।
भला कोई अब कैसे बच पाये करन,
काजल से वो कत्ल कराने लगे है।
©® जाँगीड़ करन kk
10_12_2016___6:00morning
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