Sunday, 2 August 2015

बस तु हीं तु

ना नींद आती है रातों को, ना दिन में चैन आता है,
सखी री यह क्या हुआ जाता है, हर तरफ वहीं नजर क्यों आता है|

क्यों आज मुझे मौसम भी बेईमान सा लगे है,
यह चाँद भी जरा उँघता हुआ सा लगे है|
क्यों होती है तमन्ना हरदम ही जुल्फें खुली रखने की,
ये मेरा दिल भी क्यों मचलता हुआ सा लगे है||
सखी री यह...................................................

ये हवायें भी क्यों मुझसे बदमाशियाँ सी करती है,
ये मेरी चुनर भी बार बार क्यों जाती सरकती है|
क्यों छा गई है अजब सी लाली मेरे गालों पे,
ये मेरी आँखे भी क्यों उसके दीदार को तरसती है||
सखी री यह............................................

ये मेरे हौंठ भी क्यों लाल सुर्ख हुए जाते है,
ये मेरे कंगन भी क्यों बेवजह खनखनाते है|
क्यों हर पल ही छाई रहती है मेरे तन में मस्ती सी,
क्यों मेरे लब हर पल उसी का नाम गुनगुनाते है||
सखी री यह.............................................

जिंदगी क्यों पहले से ज्यादा हसीन सी लगती है,
क्यों मैं हर पल ही ख्वाबों में खोई सी रहती हुँ|
क्या मुझको मुझसे ही चुराने लगा है करन,
मैं प्रीत कर बैठी सखी आज तुझे दिल की बात कहती हुँ||
सखी री यह.....
©® jangir karan dc

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मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...