हकीकत को बयां करूँ,
किसी चेहरे से मैं न डरूँ,
आईना हुँ मैं, बुरा तो लगना ही है।
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कितनी बार तोड़ोगे,
क्या फिर साथ छोड़ोगे,
जिंदगी हुँ मैं, ख्वाब तो बुनना ही है।
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पीछे ही रह जाओगे,
जो तुम केवल निभाओगे,
वक्त हुँ मैं, हर पल तो चलना ही है।
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ना तो बादल है कहीं,
मौसम भी है साफ वहीं,
आँख हुँ मैं, बेवजह तो बरसना ही है।
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तुम न समझोगे,
बस रूसवा करोगे,
धरा हुँ मैं, बोझ तो सब सहना ही है।
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शापित है यौवन,
कुपित है मोहन,
हाँ, कर्ण हुँ मैं, प्रत्यंचा को टूटना ही है।
©® जाँगीड़ करन kk
18/02/2017__11:00AM
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