महफिल में
देखो तो
चारों ओर
उल्लास है,
हर चेहरे
पे आज अलग
ही रौनक है,
यहां संगीत की
स्वर
लहरी गूंज रही है,
चारों तरफ
रोशनी का सैलाब है....
मगर कोई
यहां भी
उदास है,
खुद को
तन्हा तन्हा
महसूस
करता है....
उसकी आंखें
हर वक्त
इक शख्स की
तलाश में
इधर उधर
झाँकती है,
जानती है ये
भी
कि वो
यहां
नजर नहीं
आनी है.....
मगर उस
तन्हा
दिल के
पास
और कोई
चारा भी तो नहीं......
©® जाँगीड़ करन kk
19_04_2017__22:00PM
और मैं, मेरी चिंता न कर मैं तो कर्ण हुँ हारकर भी अमर होना जानता हुँ
Wednesday, 19 April 2017
Alone boy 18
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Alone boy 31
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हाँ!! मैं अब भी मेरी छत पर बैठा उस खिड़की को निहार रहा हुँ, कि शायद किस पल तुम उससे झाँकने का इरादा कर लो! वैसे देखो ऊपर आसमाँ में चाँद भी अ...
खूबसुरत नजारा
ReplyDeleteखूबसूरत कविता
कमाल के कवि है आप ..
लिखते रहो , बढते रहो .,