Thursday, 6 April 2017

गुमनाम तारा

रात गहरी है
चांद चमक रहा
मगर वो तारा
जानें कहां गया
देखो रात भी
उदास है
उस बिन
और शायर की
आँख तो
कब से
ढूँढ रही उसको,
हां, देर रात
वो
नजर आया फिर
बोला
मन उदास है
इसलिए
खुद को
छुपा लिया
अंधेरे में
कोई देख न ले,
इसलिए।
और तुम शायर भी
तो
यह करते हो,
खुद को डायरी से
बांधकर,
हां,
तुम बाहर कितना
मुस्काते हो,
सारी दुनिया को
झुठलाते हो,
मगर मैंने रात में
तुमको
तन्हा देखा है,
टेबल पर टिकी कोहनी
को
आँखें छुपाते देखा है,
बिस्तर की सलवटों में
इक वजूद को
खोते देखा है,
काली अंधेरी रात में
शायर को
जीते मरते देखा है।

©® जाँगीड़ करन kk
06/04/2017___02:30AM

No comments:

Post a Comment

Alone boy 31

मैं अंधेरे की नियति मुझे चांद से नफरत है...... मैं आसमां नहीं देखता अब रोज रोज, यहां तक कि मैं तो चांदनी रात देख बंद कमरे में दुबक जाता हूं,...