हर अहसास की आखिरी उम्मीद होती है माँ,
मेरी ग़ज़लों की किताब सी होती है माँ।
मेरी हर खता को नजरअंदाज कर जाती है,
मौसम की पहली फुहार सी होती है माँ।
मेरी मुस्कराहट की तो दीवानी ही रहती है,
हर चोट की मगर दवा होती है माँ।
बिन मां के सुना सुना कितना यह संसार है,
हर ख्वाब की मगर तस्वीर तो होती है माँ।
हर शाम बस उदास सी लगती है करन,
अंधेरे में पीठ थपथपा रही होती है माँ।
©® जाँगीड़ करन kk
19_04_2017__5:30AM
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