तुमने ही तो कहा था कभी राह मे,
चलो संग संग कुछ ख्वाब सजाते है।
जाना तो उसी मंजिल पर है इक दिन,
कदम हम अब साथ साथ बढ़ाते है।
कुछ शब्द तुम चुनो कुछ संगीत मैं दे दुँ,
फिर वो ग़ज़ल प्यार की हम गुनगुनाते है।
मालुम न था कि रास्ते मैं मोड़ भी आते है,
अक्सर उन मोड़ों पर स्वर युँ बदल जाते है।
तुम्हारे स्वर में यह उदासी कैसी 'करन',
दोस्त मेरे मुझे कुछ अब युँ भी चिढ़ाते है।
©® करन जाँगीड़
07/12/2015(16:45)
No comments:
Post a Comment